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________________ ३८३ अर्थात् विक्रम राजाकी मृत्युके पश्चात् १३६ वें वर्षमें सौराष्ट्रके वल्लभीपुरमें श्वेताम्बरसंघकी उत्पत्ति हुई। भद्रबाहुचरितमें रत्ननन्दिने भी यही समय बतलाया है। ___दर्शनसारमें जिस विक्रमका संवत् दिया है, वह संभवतः शक विक्रम या शालिवाहन है। जैनग्रन्थोंमें शालिवाहन शकको भी विक्रम संवत् लिखनेकी परिपाटी है। इसलिए यदि यह १३६ शक है, तो इसमें १३५ जोड़नेसे २७१ विक्रम संवत्के लगभग श्वेताम्बर संघकी उत्पत्ति मानी जासकती है और इसके बाद तीसरी शताब्दिके अन्तमें-जैसा कि श्रुतावतारसे सिद्ध हो चुका है-कुन्दकुन्दाचार्यका समय निश्चित होता है। कमसे कम वि० सं० २१३ के पहले तो उनका होना माना ही नहीं जासकता। जीवनकथा। श्रीयुत तात्या नेमिनाथ पांगळने मराठीमें कुन्दकुन्दाचार्यका चरित लिखा है। उसमें उन्होंने ज्ञानप्रबोध नामक भाषाग्रन्थके आधारसे एक कथा दी है, जिसका सारांश यह है:___" मालवाके बारापुर या बाराँ नामक नगरमें कुमुदचन्द्र राजा राज्य करता था । रानीका नाम कुमुदचन्द्रिका था । उसके राज्यमें कुन्दश्रेष्टी नामक धनिक व्यापारी अपनी स्त्री कुन्दलताके साथ निवास करता था । कुन्दलताको एक पुत्र हुआ। उसका नाम रक्खा गयाकुन्दकुन्द । पुत्रकी प्राप्तिसे सेठ और सेठानीके हर्षकी सीमा न रही। "एक दिन कुन्दकुमार अपने साथी लड़कोंके साथ खेलता खेलता नगरके बाहर उद्यानमें चला गया । वहाँ एक मुनि विराजमान थे और बहुतसे श्रावक उनका पूजन अर्चन बन्दन कर रहे थे। कुछ समयमें मुनिराज धर्मोपदेश देने लगे। बालक ध्यानपूर्वक सुनने लगा । उनके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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