SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३५ क्योंकि हेतु और साधनका संबंध अथवा संबंधका अभाव अन्तर्व्याप्तिसे प्रकट किया जा सकता है' । जैसे वह पर्वत (पक्ष) अग्निसहित ( साध्य) है, क्योंकि वह धूमवान् (हेतु) है जैसे रसोईघर ( दृष्टान्त)। यहाँपर पर्वत अनुमानका मुख्य अंग है और उसमें अग्नि और धूमका अविनाभावी संबंध मिल सकता है । अतएव हम अपने अनुमानको बाहरके दृष्टान्तसे गुरु क्यों करें? रसोईघर निश्चय करके उसी संबंधको प्रगट करता है । क्योंकि उसमें अग्नि और धूम दोनों साथ साथ मिलते हैं; परन्तु रसोईघर अनुमानका आवश्यक अंग नहीं है, अतएव प्राकर्णिक विषयके लिए वह संबंध जिसकी यह सिद्धि करता है बहिर्व्याप्ति कहा जा सकता है। हमको न्यायसंबंधी स्वच्छता और मानसिक परिश्रमकी मितव्ययिता पर ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि जब मनकी चालमें अनावश्यक बातें आ जाती हैं, तब वह व्यग्र हो जाता है। ९७. उपनय और निगमनको भी अनुमानके अंग बनाना व्यर्थ है; परन्तु इनका प्रयोग दृष्टान्तसहित अल्पबुद्धिबालोंको ज्ञान करानेके लिए किया जाता है। अनुमानके अवयव ये लिखे है:---- १. पक्षप्रयोग-पर्वत अग्निसहित हैं । २. हेतुप्रयोग क्योंकि वह धूमवान् है । १. अन्तव्याप्त्या हेतोः साध्यप्रत्यायने शक्तावशक्ती च बहिर्व्याप्तेरुद्भावनं व्यर्थम् ॥ ३५ ॥ (प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, तृतीय परिच्छेद) २. मन्दमतास्तु व्युत्पादयितुं पृष्टान्तोपनयनिगमनान्यपि प्रयोज्यानि ॥ ३९ ॥ (प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, तृतीय परिच्छेद) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy