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३. दृष्टान्त -- जो अग्निसहित होता है, वह धूमवान् होता है ।
जैसे रसोईघर ।
४. उपनय - यह पर्वत धूमवान् है ।
५. निगमन - अतएव यह पर्वत अग्निसहित है ।
९८. अभाव अथवा अनुपलब्धके ये भेद किये गये हैं— (१) प्रागभाव; (२) प्रध्वंसाभाव; (३) इतरेतराभाव; और (४) अत्यंताभाव । भिन्न प्रकार के आभासोंका भी वर्णन किया गया है। आगम और नयके अभ्यंतर सप्तभंगीनयका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गय है । प्रमाणके हेतुसहित और हेतुरहित फलोंका स्पष्टरूपसे वर्णन किया गया है।
९९. ज्ञानके परिणाम और उन परिणामोंके व्यावहारिक उपयोग भ्रांतिजनक ( सांवृति ) नहीं, किन्तु पारमार्थिक बतलाये गये हैं । १००. नयके प्रकरण में नयाभासोंका इस प्रकार वर्णन है :
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(१) नैगमाभास - जैसे आत्माका अनुमान करनेमें हम उसकी 'सत्ता' ( सामान्यगुण ) और उसकी चेतना ( विशेषगुण) में भेद कर देते हैं ।
(२) संग्रहाभास - यह उस समय होता है जब हम किसी वस्तुकों उसमें केवल सामान्य गुण होनेसे ही यथार्थ कहने लगते हैं, और उसके विशेष गुणों पर सर्वथा दृष्टिपात नहीं करते। जैसे जब हम कहते हैं कि बांस वृक्ष द्रव्यकी अपेक्षा यथार्थ है, परन्तु उसमें विशेष गुण नहीं है ।
( ३ ) व्यवहाराभास -- जैसे चार्वाकदर्शन जिसमें द्रव्य, गुण इत्यादि में अशुद्ध भेद किया गया है ।
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