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________________ २८४ 1 'चिल्लाकर बोला- अरे बाप ! सामने वह साँप सरीखा क्या पड़ा है ? श्रमणने ध्यानसे देखा तो उन्हें एक बसनी जैसी चीज़ नज़र आई। वे पहले गाड़ी पर से कूद पड़े और देखते हैं तो एक मुहरोंसे भरी डुई बसनी (लम्बी थैली ) पड़ी है ! उन्हें विश्वास हो गया कि यह बसनी और किसीकी नहीं, उसी सेठकी है। उन्होंने थैली उठा ली और उसे किसानके हाथ में देकर कहा कि जब तुम बनारस में पहुँच जाओ तब उस सेठका पता लगाकर उसे यह बसनी दे देना। उसका नाम पाण्डुजौहरी और उसके नौकरका नाम महादत्त है । ऐसा करने से उसको अपने इस अन्याय कर्मका पश्चात्ताप होगा जो उसने तुम्हारे साथ अभी किया था। इसके साथ ही तुम यह भी कहना कि तुमने मेरे साथ जो कुछ किया है वह सब मैं क्षमा करता हूँ और चाहता हूँ कि तुम्हारे व्यापारमें खूब सफलता प्राप्त हो । मैं यह सब तुमसे इस लिए कहता हूँ कि तुम्हारा भाग्य उसके भाग्य की बढ़तीपर निर्भर है - उसे ज्यों व्यापार में सफलता प्राप्त होगी त्यों त्यों तुम्हारा भी भाग्य खुलेगा । इसके बाद परोपकारकी मूर्ति और दीर्घदृष्टि श्रमण महाशय यह सोचते हुए वहाँ से चल दिये कि यदि जौहरी मेरे पास आयगा तो मैं उसकी भलाई करने के लिए शक्ति भर प्रयत्न करूँगा - उपदेश देकर उसे वास्तविक मनुष्य बना दूँगा । ( ३ ) बनारस में मल्लिक नामका एक व्यापारी था । वह पाण्डु जौहरीका आढ़तिया था । जिस समय पाण्डु उससे जाकर मिला, उस समय वह रो पड़ा और बोला- मित्र मैं एक बड़े भारी संकटमें आ पड़ा हूँ । - अब आशा नहीं कि मैं तुम्हारे साथ व्यापार कर सकूँ। मैंने राजाके खाने के लिए बढ़िया चावल देनेका बायदा किया था । उसके पूरा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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