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________________ कर्म किये हैं उनका फल हम इस समय चख रहे हैं और अब जो कर रहे हैं उनके फल आगे भोगना पड़ेंगे। __किसान-आपने जैसा कहा वैसा ही होगा । परन्तु ऐसे घमंडी और दुष्ट मनुष्य हम सरीखे गरीबोंको जो इस तरह बिना कुछ लिये दिये ही तंग किया करते हैं, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए ? श्रमण-भाई, मेरी समझमें तो तेरे विचार भी लगभग उसी सेठ ही सरीखे हैं। जिस कर्मसे आज वह जौहरी और तू किसान हुआ है, यद्यपि ऊपरसे उस कर्ममें बहुत भिन्नता मालूम पड़ती है परन्तु भीतरी दृष्टिसे देखा जाय तो वह उतनी नहीं है। जहाँ तक मुझे मनुष्यके मानसिक विचारोंकी जाँच है उसके अनुसार मैं कह सकता हूँ कि आज यदि तू भी उस जौहरीकी जगह होता तथा तेरे पास भी उसके नौकरके जैसा बलवान् नौकर होता और जिस तरह तेरी गाड़ीसे उसका रास्ता रुक रहा था उसी तरह यदि उसकी गाड़ी तेरा रास्ता रोकती, तो तू भी उसका नम्बर लिये बिना न रहता। उसके चावलों का सत्यानाश हो जायगा, इसकी तुझे भी कुछ परवा न होती और इस बातको भी तू भूल जाता कि मैं किसीका बुरा करूँगा तो मेरा भी बुरा होगा। - किसान-महाराज, आप सच कहते हैं। मेरी चेल, तो मैं उससे कुछ कम न रहूँ। परन्तु आप तो अकारण बन्धु है; बिना स्वार्थके आपने मेरी सहायता की, मेरे मालको बिगडनेसे बचाया और मेरा काम शीघ्रतासे पूरा करके मुझे रास्ते लगा दिया। यह देखकर मेरा जी चाहता है कि मैं भी अपने जातिभाइयोंके साथ अच्छा वर्ताव करूँ और अपनी शक्तिके अनुसार उनकी भलाई करनेमें तत्पर रहूँ। किसानकी गाडी दुरुस्त होकर आगे चलने लगी। वह थोड़ी ही दूर आगे बढ़ी थी कि एकाएक उसके बैल चमक उठे। किसान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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