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________________ २०८ इससे पालनपोषण करनेवालोंको भी दुःख भोगना पडता है। क्यों कि अकाल लज्जाकी सृष्टि होनेसे अनावश्यक उपद्रव बढ़ जाते हैं । जो सभ्य जन नहीं हैं केवल सरल सीधे सादे बच्चे हैं उन पर भी निरर्थक सभ्यता लादकर धनका अपव्यय करना शुरू कर दिया जाता है। नग्नता या नंगेपनमें एक बड़ी भारी खूबी यह है कि उसमें प्रतियोगिता या बदाबदी नहीं है। किन्तु कपड़ोंमें यह बात नहीं है। उनसे इच्छाओंकी मात्रायें और आडम्बरोंके आयोजन तिल तिल, करके बढ़ते ही चले जाते है। बच्चोंका नवनीत-कोमल, सुन्दर शरीर धनाभिमान प्रकाशित करनेका एक उपलक्ष्य बन जाता है और सभ्यताका बोझा निष्कारण अपरिमित और असह्य होता जाता है। ___ इस विषयमें अब हम डाक्टरी और अर्थनीतिकी युक्तियाँ और नहीं देना चाहते। क्योंकि यह लेख हम शिक्षाके सम्बन्धमें लिख रहे हैं। मिट्टी-जल-वायु-प्रकाशके साथ पूरा पूरा सम्बन्ध न होनेसे शरीरकी शिक्षा पूर्ण नहीं हो सकती। हमारा मुख जाडोंमें और गर्मियोंमें सर्वदा ही खुला रहता है, इसीसे हमारे मुखका चमड़ा अन्य सारे शरीरके चमडेकी अपेक्षा अधिक शिक्षित है-अर्थात् वह (मुख) इस बातको अच्छी तरहसे जानता है कि बाहरके साथ अपना सामञ्जस्य बनाये रखनेके लिए किस तरह चलना चाहिए। वह अपने आप ही सम्पूर्ण है-उसे कृत्रिम आश्रय लेनेकी आवश्यकता नहीं। यहाँ हम यह कह देना आवश्यक समझते हैं कि हम मेंचेस्टरके व्यापारियोंको हानि पहुँचानेके लिए अंगरेजोंके राज्यमें नग्नताका प्रचार नहीं करना चाहते हैं। हमारा मतलब यह है कि शिक्षा देनेकी एक खास अवस्था है और वह बाल्यकाल है। उस समय शरीर और मनको परिणत परिपक्व करनेके लिए प्रकृति देवीके साथ हमारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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