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नामक तीन शिष्योंपर और जोरावरसिंह नामक एक और युवकपर नीमेज जिला शाहबादके महन्त और उसके एक सेवककी हत्या करनेका अपराध लगाया गया है। मुकद्दमा आरामें चल रहा है। माणिकचन्द सरकारी गवाह बन गया है। उसने स्वयं अपने साथियों सहित हत्या करना स्वीकार किया है । और भी कई साक्षियोंसे हत्या करना सिद्ध हुआ है। हत्या महन्तकी सम्पत्ति लेनेके लिए की गई थी । जो सम्पत्ति मिलती वह देशसेवाके काममें खर्च की जाती। परन्तु अपराधी तिजोरी न तोड सके और भयके मारे भाग गये । सेठीजी इस हत्यामें शामिल नहीं बतलाये जाते हैं, परन्तु पुलिसको विश्वास है कि उनकी भी इसमें साजिश है । कुछ ऐसे सुबूत भी मिले हैं जिससे अनुमान होता है कि सेठीजीने एक राजद्रोह प्रचारक. समिति बना रक्खी थी और उसका सम्बन्ध दिल्लीके षडयन्त्र करनेवालोंसे था। अपराधियों से जयचन्द और जोरावरसिंह लापता हैं। शिवनारायण द्विवेदी जो बम्बईमें गिरिफ्तार किया गया था, उसके द्वारा पुलिसको इस सारे षडयन्त्रका पता लगा है। इस समाचारको पढ़कर हम लोगोंके आश्चर्यका कुछ ठिकाना नहीं रहा है। क्या जैनियोंके द्वारा भी ऐसे घोर पातक हो सकते हैं ?
ग्रन्थ लिखाइए-आराके जैन सिद्धान्तभवनमें इस समय कई सुलेखक मौजूद हैं । भवनके सचित ग्रन्थोंमेंसे यदि कोई भाई ग्रन्थ लिखवाना चाहें तो मंत्रीसे शीघ्र ही पत्रव्यवहार करें।
मुंशीजीका देहान्त-गत ता० ८ मईको महासभाके महामंत्री मुंशी चम्पतरायजीका देहान्त हो गया । यह बड़े ही शोकका विषय है । आप कई महीनेसे बीमार थे।
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