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हैं, खेती आदिके काम मुहूर्त देखकर करते हैं, रामायण और महाभारतकी आख्यायिकाओंपर रचे हुए नाटक खेलते हैं, और बड़के झाड़ोंके नीचे उनके ग्राम्य देवोंके मन्दिर होते हैं । वहाँके मुसलमान तक हिन्दू देवोंकी पूजा करते हैं ! वहाँ दो ज्वालामुखी पर्वत हैं उनका नाम उन्होंने अर्जुन और ब्रह्मा रख छोड़ा है । इस द्वीपके पूर्वकी ओर 'वाली' नामका द्वीप है। वहाँके तो प्रायः सबही लोग हिन्दू हैं । वर्णव्यवस्था तक उनमें मौजूद है।
विदेशमें हिन्दू-मंदिर-विदेशयात्राके लिए चाहे कितना ही प्रतिबन्ध किया जाय परन्तु वह रुकती नहीं। लोग तो जाते ही हैं अब उनके साथ उनके इष्टदेव भी जाने लगे हैं । नेटालके 'वेरुलम' नामक
गरमें अभी हाल ही गोपाललालका एक विशाल मन्दिर बनकर तैयार हुआ है।
बंगलामें जैनसाहित्य-बंगलाके मासिकपत्रोंमें अब जैनसाहित्यकी थोड़ी बहुत चर्चा होने लगी है । अभी अभी ऐसे कई लेख प्रकाशित हुए हैं। फाल्गुन चैत्रके 'साहित्य में उपेन्द्रनाथ दत्त नामक किसी सज्जनने 'जैनशास्त्र' शीर्षक एक लेख लिखा है । इसमें चार अनुयोगोंका संक्षिप्त स्वरूप दिया है । लेखमें भूलें बहुत हैं; एक जगह लिखा है कि "श्वेताम्बरी लोग कहते हैं कि जैनशास्त्र जैनसाधु और तीथकरोंके रचे हुए हैं; परन्तु दिगम्बरी कहते है कि केवल महावीर तीर्थकर ही इनके प्रणेता हैं।" पर यह भ्रम है । भूलें आगे सुधर जावेंगी-अभी चर्चा होने लगी इतना ही बहुत है।
जैनियोंपर नरहत्याका अभियोग--जयपुरकी जैनशिक्षाप्रचारक समितिके संस्थापक पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. इस समय बड़ी विपत्तिमें हैं। उनके माणिकचन्द, मोतीचन्द और जयचन्द
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