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VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 1
मानते थे। लेकिन वे कहते थे कि करने-घरने से कुछ नहीं होता है। यदि तुम किसी का गला काटोगे, तो उससे पाप नहीं होगा और यदि तुम गरीबों में रुपया बांट दोगे, तो उससे पुण्य भी नहीं होगा। यानी तुम्हारे करने-धरने का कोई असर तुम्हारे पुनर्जन्म पर नहीं होगा । किसी भी जीव के लिए सबसे बड़ी चीज है भाग्यचक्र । जीव तो अपने भाग्यचक्र के अनुसार चौरासी लाख योनियों में गुजरने के बाद अपने आप अर्हत हो जायगा । वे ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे, पुनर्जन्म में विश्वास करते थे, लेकिन प्रक्रियावादी थे। किन्तु, भगवान बुद्ध ने ऐसी धारणा को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जिस धर्म में पुरुषकार नहीं है, वह धर्म जनता के लिए मंगलदायक नहीं हो सकता। इसीलिए भगवान् बुद्ध ने धर्म का उद्देश्य बताया-बहुजनहिताय च'। जिस धर्म में पुरुषकार को स्थान नहीं है, वह धर्म 'बहुजनहिताय च' नहीं हो सकता। इस तरह धर्म का जो सबसे बड़ा क्षेत्र है, वह है, आचरण और आचरण की बुनियाद है, जैसाकि मैं समझा हूँ, युक्ति ।
इस प्रसंग में मैं आपलोगों को बौद्धधर्म का एक वाकिया बतलाना चाहता हूँ। आप जानते ही होंगे कि कुछ संन्यासी एकदम कपड़ा पहनते ही नहीं । कुछ संन्यासी पहनते भी हैं तो एक या दो कपड़े पहनते हैं। किन्तु, भगवान बुद्ध ने बौद्ध मिक्षुओं के लिए तीन कपड़े पहनने का नियम कर दिया। उन्होंने क्यों ऐसा कर दिया ? उन्होंने प्रयोग कर देखा कि कितना कपड़ा पहनना चाहिए । हेमन्त ऋतु में-शीतकाल में उन्होंने महसूस किया कि बहुत ठंढा पड़ता है। उसमें उन्होंने स्वयं अपने पर प्रयोग कर देखा, एक कपड़ा लिया, दूसरा कपड़ा लिया, तीसरा कपड़ा लिया। उन्होंने पाया कि तीन कपड़े में आराम तो नहीं होता, लेकिन कष्ट-निवारण होता है। भगवान् बुद्ध तो मध्यपंथी थे, मध्यमा प्रतिपदा को मानने वाले। इसलिए उन्होंने भिक्षुओं से कहा कि तीन कपड़े लिया करो।' इस तरह भगवान बुद्ध का या बौद्ध धर्म का जो 'विनय' हैं, उसकी बुनियाद युक्ति है। इस प्रसंग में एक दूसरा उदाहरण लीजिए। भगवान बुद्ध ने खड़ाऊँ पहनना बन्द कर दिया', क्योंकि खड़ाऊं से बहुत आवाज होती है और उस आवाज से ध्यान तथा एकाग्र-चिन्ता में व्याघात होता है। इसलिए उन्होंने तय कर दिया कि भिक्षुगण खड़ाऊँ नहीं पहनेंगे । लेकिन विना खड़ाऊं के पैदल चलने-फिरने में जब तकलीफ महसूस हुई, तो उन्होंने कहा कि एक परत की चर्मपादुका पहन सकते हैं । हाँ, विशेष परिस्थिति में कोई कठिनाई उपस्थित होने पर
१. भगवा सीतासु हेमन्तिकासु रत्तीसु अन्तरतुकासु हिमपातसयये रत्ति प्रज्झोकासे एक
चीवरो निसी दि | न भगवन्तं अहोसि । निक्लन्ते पठमे यामे सीतं भगवन्तं अहोसि । दुतियं भगवा चीवरं पारूपि । न भगवन्तं सीतं अहोसि । निक्लान्ते मज्झिमे यामे सीतं भगवन्तं अहोसि । ततियं भगवा चीवरं पारुपि । न भगवन्तं सीतं अहोसि...'ये पिखो ते कुलपुत्ता इमस्मि धम्मविनये सीतालुका सीतभीरुका तेपि
सक्कोन्ति तिचीवरेन यापेतुं' । महावग्ग, ८. १५. २१ ( पृष्ठ ३०४ )। २. महावग्ग- ५. ७. १५ ( पृष्ठ-२०८)। ३. एक परतवाली चर्मपादुका को पालि में एकपलासिक कहा गया है।
महावग, ५. ३. ७ ( पृष्ठ २०४ ) ।
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