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________________ 38 જૈનધર્મ વિકાસ जाइस्सरणं पत्तो-उवगरणपमजणं पकुव्वंतो॥ जाणइ पुव्वभवीयं-चत्तं चरणं ति कामाओ ॥१०॥ इय चितंतो जाओ-सव्वण्णू सोमचंद मुवइ सए ॥ तो से समणो जाओ-सीलं रक्विज णचे वं ॥११॥ लोहंधाईहितो-कामंधस्सा हियत्त मादिद्वं॥ रमणीजणणीभेओ-ण जस्स चित्तम्मि लेसाओ ॥१२॥ वेरग्गभावजणगं-कुवेरदत्ताइयाण मक्खाणं ॥ संपत्ता सीलवई-सीलाओ भसग्गसुहं ।।९३॥ अहिणववाहू लद्धा-कलावईए सुसीलमाहप्पा ॥ मलयागिरीइ पत्तो-विउत्तपइसुयजुयलसंगो ॥१४॥ नारीए लाहढे-परोप्परं सिहइ मरण मिह णचा ॥ एला सुओ विमोही-नाणी जाओ सुहणिमित्ता ॥९५॥ उवइसए रायाई-पुन्वित्थी मह नडी सजाइमया ॥ तण्णेहा हं राई-जाइस्सरणं नडी पत्ता ॥१६॥ केवलिणी संजाया-सुइभावेहिं नडी निवइ रमणी ॥ कंखियनडीपसंग-भूवं तजेइ सुहभावा ॥९॥ केवलनाणं पत्ता-निंदियपावो निवो सुहसहावो ॥ सव्वष्णू संपण्णो-एवं सीलं वियारिजा ॥९८॥ मेहुणो गुणणासो-दिलुतो सचई विसयरागा॥ मरणं निरए पीडा-इक्कारसमो मओ रुद्दो ॥१९॥ से मित्तस्स णुराआ-कुद्धो भूवाइयं च तजंतो ॥ मेहुणयलिंगपूयं-पयडीअ तयचणं तत्तो ॥१०॥ कालत्तयचणाए-समजियं तेण तित्थयरणामं ॥ सिरिसुव्वयतित्थयरो-इगदसमो सच्चई होही ॥१०॥ नारीकूडं ण बुहा-कलंति नेउरबुहीनिदरिसणओ॥ चिच्चा निवाइअतिगं-अडविं निवकामिणी भमए ॥१०२॥ बहुपावं विसएसुं-मइभेओ मण्णए दुहं सुक्खं ॥ जंज कामी पासइ-तं तं रमणिं समहिलसए ॥१०३।। - (अपूर्ण.)
SR No.522522
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages40
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size9 MB
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