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જનધર્મ વિકાસ.
_अभयदेवसूरीजी. वीराचार्य के समकालीन आचार्य थे। ग्वालियर के जैन इतिहास में इनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती यूंकि वहां के अधिकारियों द्वारा की हुई महावीर स्वामी के मन्दिर की दुर्व्यवसथा को हटाने तथा इस प्रकार जैन धर्मको महान आपत्ति को टालने के लिये अभयदेवसूरिजी ने ही स्वयं वहां जाकर स्थानीय नरेश भुवनपालको समझा बुझाकर पुन; मंदिरकी सुविवस्था कराई थी एसा चंदसूरि विरचित मुनि सुव्रतस्वामी चरित्र की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। उपरोक्त मन्दिर वही. होना चाहिये नांगावलोकने निर्माण कराया था।
वहांपर जो भीमकाय कला पूर्ण जैन मूर्तियें उपलब्ध होती हैं उनमें से कतिपय मूर्तियें प्रतापिनरेश डोंगरजी के समय में बनी हुई है । ऐसा तत्रस्थित शिला लेखों से फलित होता है यह डोंगरसिंहजी वही हैं जिसने नरवर पर चढ़ाई कर उसे सर कर ग्वालियर के राज्य में महत्वपूर्ण अभिवृद्धी की । भानुचंद्र चरित्रमें उल्लेख पायाजाता है (पृ० ३५-३६) वहां के राजाने १ लाख जैन बिम्ब बनवाये थे वे मौजूद है यधपि उक्त शंयमे राजा का नाम निरदेश नहीं किया गया पर अन्यन्य साधनों से ज्ञात होता है यह राजा ग्वालियर के प्रतापी नरेश महाराजा डोंगरसिंहजी ही होने चाहिये यूंकि डोंगरसिंहजी के राजत्वकालमें जैनमूर्तियों की खुदाई का कार्य प्रारंभ हुआ था वह तदात्मज करणसिंहजी के समयमें पूर्ण हुआ। ये भी अपने पिताके समान अद्वितीय वीर निकले । ग्वालियरका राज्य आपके अस्तित्व कालमें बढ़कर मालवाके बराबर हो गया था। राजा मानसिंह ग्वालियर की गद्दी पर एक कला प्रेमी राजा हो गये है, इनके जीवन में कला का स्थान बहुत महत्व पूर्ण था । उदाहरण रूपमें ग्वालियर दुर्गका मानमन्दिर और गूजरी महल ही पर्याप्त है ।
अब हम यहांपर कुछ ऐसे मिसाल देते हैं जिनसे यह पता चलेगा कि प्राचीन कालमें यहां पर कौन कौन से मुनी आये थे । मुनी श्रीकल्याणसागरजी स्व. निरमित चैत्य परिपाल में ग्वालियरका उल्लेख इस प्रकार करते हैं
प्राचीन तीर्थमाणा संग्रह प्र. ७२ १२ गोवगिरो सिहर संठियचर मजिणाय यष पार भवरु हुँ।
पुनिव दिन्न सासण संसाधणिसींह चिर काल ॥१०॥
गंतूण तत्य भणिउण भुषण पावाभिहाण भूवाल । .. आश्सय पयत्तेणं गुल्ललयं कारियां जेण ॥१०॥
Pattan Cataloguie of Manuscripts Page 316.