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________________ જેને સાહિત્ય ગ્વાલીયર રેક૭ उपरोक्त उल्लेख से फलित होता है वहां पर भगवान पार्श्वनाथजी का मन्दिर होना चाहिये । गुजराती तीर्थमाला साहित्य में शीलविजय विरचित लेखनकाल १७४९) तीर्थमालामें ग्वालीयर का उल्लेख इस प्रकार किया गया है। पावन गज प्रतिमा दीपती गढ़ गुवालेरि सदा शोभती ___ वही प्र. १११ उपलब्ध तीर्थमालाओं में सौभाग्यविजय विरचित ती० भौगोलिक दृष्टि से बड़े ही महत्व की है । उसमें भी आपने ग्वालियर का उल्लेख किया है। गढ़ ग्वालेर बालन गज प्रतिम वंदू ऋषभ रंगरोलीजी .. वही प्र. ९८ उपरोक्त तीर्थमाला का निर्माण समय १७५० है। : उपर के सभी उल्लेख ऐतिहासिक द्रष्टी से बड़े महत्व के है जिससे जाना जाता है कि मूर्तियों का महत्व अत्यन्त ही है इसके अलावा और भी बहुत उल्लेख पाये जाते है। ग्वालियरकी मूर्तियां और किले का महत्व जानने के लिये क्रमशः अनेकान्त और जयाजीप्रताप देखने चाहिये । मूर्तियों के लेख डा. राजेन्द्रलाल मित्रने Indo Aryans Vol 2. प्रकाशित किये हैं और वहां के तीनों मंदिरों के प्रतिमा लेख सुप्रसिद्ध पुरातत्वज्ञ बाबू पूर्णचंद्रजी नाहरने जैन लेख संग्रह भाग २में दी है । प्राचीन पुरातन समय से ही ग्वालियर शिक्षामें बहुत बड़ा चड़ा है । आइन-इ. अकबरिं में ३६ गायकों का वर्णन पाया जाता है उनमें से तानसेन आदि उने उक्त नगरमें शिक्षा पाइ थी वर्तमानमें भी ग्वालियर में अच्छे अच्छे गवैये मौजूद है इस नगर के शुभ्र इतिहास पर पुरातत्वज्ञ विशेष प्रकाश डालेंगे एसी आशा से निबन्ध पूर्ण किया जाता है।
SR No.522520
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages52
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size10 MB
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