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________________ रत्न दीप Motorandmot पतिव्रता स्त्रीकी कखमें ही तीर्थकर और महात्माओंका जनम होगा । हम देखेंगे तो हमे मालुम होगा कि आज तक जो महात्मा 3) हुए हैं वे सब पतिव्रता स्त्रीको कखसे ही हुआ है। आज जो वे होते हैं और जो कल होनेवाला है वे सभी ऐसी पतिव्रता स्त्रीकी गोदसे ही होगा। हम यदि किसी स्त्रीको पतिव्रता कहते हैं तो वह खूशीकी मारी झूम उठती है। लेकिन वह जो उनका धर्म (पतिधर्म) का पालन न करती हो तो क्या वह पूण्यमयी कह लायेंगी? कई ऐसे मर्द हैं जो अपनी बीबीको पनिव्रता धर्मका पालन करानेके लिए उसे पडदानशीन रखते हैं। पर इस धर्मका पालनके लिए पडदा सही साधन नहि है । पडदा होते हुए भी कई स्त्री अपने धर्मसे भ्रष्ट होते हुए हम देखते हैं । याद रहे, ज्ञानसे पतिव्रता धर्मका पालन हो शकता हैं। अपनी बीबीको पड़दानशीन करके और उनका दम घोंटनेसे, उनके दिलमें त उठती वासनाओंको आर थाम नहि शकेंगे। इस लिए तो संस्कार Education ही एक साधन है। स्त्रीको कन्या कालमे जो पतिधर्मकी शिक्षा दी आर तो वह जरुर अपने पतिको इज्जत करेगी और मेवा भी। कई मर्द एसे भी हैं जो अपनी बीबीको, अपने आपको खू मनानेके लिए तंग करते हैं । चाहे वह क्यों न कितना बदचलन हो ? पर उसकी कोई परवाह नहि । मर्दकी ऐसी बेतुकी बातोंका वह । कैसे स्वीकार करेगी ? यदी राजा दुष्ट और पापी हो तो क्या उनकी प्रजा उनहें इश्वर माननके लिए तैयार हो जायेगी ? वैसे ही औरत अपने बदचलन और आवारा पतिको खुदा क्या मान लेगी? जवाब साह है। हरगीज नहि।
SR No.522153
Book TitleBuddhiprabha 1964 03 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Shah
PublisherGunvant Shah
Publication Year1964
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Buddhiprabha, & India
File Size2 MB
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