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________________ KA रत्न दीप ___ यदि मर्द अपने आपको खुदा समझ कर पूजा कराना चाहता हू हो तो उन्हे खुदाके काबिल बनना चाहिये । यहाँ खुदाका मतलब बड़ा समझना चाहिये । अर्थ जो अल्ला, तीर्थकर व. होता है वह नहि । कई एसे भी हैं कि जो अपनी बीबीको, जब कि वह खुदाकी इबादतमें बेठी हो तब वह कहते हैं कि ऐसा मत करो। तुम मेरी ही सामने बेठी रहो। मुझे ही खुदा समक्ष लो। मुझे ही धर्म मान लो। भोगके लिए मेरी ही आज्ञा उठाया करो। इससे तुम्हें इस लोकमें और पर लोकमें सुख मिलेगा। और तुम परवरदिगारके पास भी जा शकोंगी! ... ऐसी अशुभ वासनाओंकी आज्ञा देनेका, मर्दोकों परवाना दीया " गया हैं क्या ? जी नहि । औरत जब आत्मोनति या परमार्थ कार्य शा करती हो और संसारके व्यवहारको बाधा न पहूंचे इस तरह अपना न धर्मका पालन करती हो तब मर्दोकी-औरतको अपने मर्दको खुदा समझना-एसी आज्ञा कभी असर नहि करेगी। संसारके सभी मर्दोको कहा जाता है कि बदचालसे अपनी बीबीके दिलको ठेस मत लगाना। क्योंकी जीस घरमें औरत रोती है, ठंडी आहे भरती है और बेचैन रहती है, उस घरमें न कभी शांति रहती है और न कभी उस घरको उन्नत्ति होती है।
SR No.522153
Book TitleBuddhiprabha 1964 03 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Shah
PublisherGunvant Shah
Publication Year1964
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Buddhiprabha, & India
File Size2 MB
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