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अपभ्रंश भारती 21
उप्पण्णु तित्थु तित्थयर देव। चक्केसर हलहर महिस सेव।।6।।
तिखंडणाह पडिवासु देव। चउवीस महातहि कामदेव।।7।।
आगम पुराण चउसट्ठि भेय। केवलि परमेसर रिसि अणेय।।8।।
णव णाराइण एयारह वि रुद्द। उपपण्ण पयड जिह जगि समुद्द॥७॥
घत्ता- हलहर केसवकित्ति। धम्म पयत्तण तित्थइ।
अइसय केवलणाण। इ हुवई कालि चउत्थइ।।10।।(4)
पंचमउ कालु दूसमू रउडु। होएसइ भारिउ दुह सम्मुहु।।।।। तहिं दुक्खिय होसइ लोय ताम। गय वरिस सहस इकवीस जाम।।2।।
उच्चत्तु तित्थु आहुठ्ठ हत्थ। वीसहि वीसासउ णिरत्त।।3।।
कंदल पिय णरवइ अत्थलुद्ध। होएसहिं अवरोप्परु सकुद्ध।।4।।
लुट्टेसहि पट्टण गामदेस। दंडीसहिं पामर जण असेस।।5।।
कंदर गिरि वण चरवण पवेसि। णिवसेसहि णर मिछा हि देसि।।6।।
उव्वसहो एस हि वि विह गाम। आसातर वर होसहि पगाम।।7।।
भंजेसहि मढ देवल विहार। पूरेसहि सरवर जल अपार।।8।।
घत्ता- जणु होसइ दुट्ट हे भत्तउ। जीव वहेसइ पावमइ।
उवहासु करेसहि जिणवरहो। परधण महिला सत्तइ।।9।।(5)