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________________ अपभ्रंश भारती 21 87 5.6-7 वहाँ तीर्थ के प्रवर्तक देव (तीर्थंकर), चतुर्विध संघ, चक्रवर्ती, बलदेव (हलधर), तीन खंड पृथ्वी के नाथ/राजा (अर्धचक्रवर्ती), प्रतिवासुदेव (और) चौबीस श्रेष्ठ कामदेव उत्पन्न हुए। 5.8-9 (तब) चौंसठ प्रकार (भेदोंवाला) आगम-पुराण, अनेक के वलि परमेश्वर (और) ऋषि (हुए), (तथा) नौ नारायण, ग्यारह रुद्र संसार-समुद्र में प्रकट हुए। 5.10 घत्ता- इस प्रकार चौथा काल बलदेव, नारायण, धर्म, तीर्थ (व) केवलज्ञान से परिपूर्ण होता है (हुआ)। 6.1 पाँचवाँ 'दुसमा' (दुखमा) काल भीषण (भयंकर, दारुण) कष्टकर, दुःखों का सागर होगा। 6.2 जब तक इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत (होंगे) तब तक वहाँ लोग दुःखी होंगे। 6.3 वहाँ (मनुष्यों की) ऊँचाई साढ़े तीन हाथ (होगी)। आयु एक सौ बीस वर्ष (अधिकतम) (होगी) (लोग) अत्यधिक आसक्ति-युक्त (होंगे)। 6.4 राजा कलहप्रिय, धन के लोभी होंगे और एक-दूसरे पर/परस्पर क्रोधयुक्त होंगे। 6.5 सब परस्पर ग्राम, देश, पत्तन (आदि) लूटेंगे, अज्ञानीजन प्रताड़ित किये जायेंगे। 6.6 मनुष्य (परस्पर) द्वेष करनेवाले होंगे, झूठे होंगे; कंदराओं (गुफाओं) में, 'पहाड़ों में प्रवेश करनेवाले, घूमनेवाले, निवास करनेवाले होंगे। 6.7 मार्ग, गाँव, जनपद निर्जन होंगे। (उनमें) आशा (व) कामना (इच्छा) का वेग-बल अत्यधिक होगा। 6.8 (लोग) मन्दिर, उपाश्रय, मठों को भग्न (विनष्ट) करेंगे। सरोवर अथाह जल से भरेंगे (अर्थात् अतिवृष्टि से बाढ़ आयेगी)। 6.9 घत्ता- लोग दुष्ट होंगे, पापयुक्त होंगे; जीवों का वध करेंगे, (उन्हें) पीड़ा पहुँचायेंगे। जिनवर का उपहास करेंगे। परधन व परनारी पर आसक्त / लोलुप होंगे।
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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