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________________ अपभ्रंश भारती 21 4.1 (फिर) तीसरा काल प्रारंभ / उत्पन्न हुआ । ( इस काल में) वह सुखराशि कुछ कम हुई। 4.2 उस (काल) का 'सुसमा - दुसमा' (सुखमा दुखमा) यह नाम कहा गया। ( तब / इस काल में) काल के वश से (प्रभाव से) लोग क्षीणकाय (दुर्बल) हुए । 4.3 वहाँ आयु (पड़ाव, अस्थायी निवास) एक पल्य की कहते हैं। (आयु के) अवसान में / पर (लोग) छींकते हुए देह छोड़ते हैं ( मरते हैं)। 85 4.4 (वे) स्वर्गलोग में जाकर उत्पन्न होते हैं, ( वहाँ उनका ) आवास (आयु) एक पल्योपम होता है। 4.5 जो युगल भोगभूमि में मरते हैं (उनकी) देह (शरीर) को व्यंतर जाति के देव क्षीरसागर में डालते हैं। 4.6 अवसर्पिणी काल के आने पर तीसरा काल भोगभूमि के तुल्य / समान श्रेष्ठ (उत्तम) व विशाल सुखवाला होता है। 4.7 अवसर्पिणी के अवसान पर ( अन्त में) विकास (वृद्धि) आयु, सुख (आदि) अल्प हो जाते हैं (होते जाते हैं) । 4.8 तब / उस (काल) में मनुष्यों की आयु (व) लम्बाई कम ( पतित ) हो गई और इस प्रकार संपूर्ण दो कोडाकोडी (सागर का समय) व्यतीत हो गया । घत्ता - उस (काल) के अन्त में इस भरतक्षेत्र में विशेष, कुल, गुणोंयुक्तियों - लक्षणों से सम्पन्न, पूर्वों (शास्त्रों, आगम ग्रन्थों) के ज्ञाता चौदह कुलकर उत्पन्न हुए। 5.1 कुलकरों के द्वारा पहले इच्छानुकूल जनपद, ग्राम, क्षेत्र, वंश -कुल- गोत्र ( आदि) स्थापित किये गये । 4.9 5.2-3 भरत क्षेत्र में इस प्रकार तदनुसार अनुक्रम से तीसरा काल ( सुसमा - दुसमा ) समाप्त हुआ, तब क्रम से चौथा काल आया। वहाँ लोगों में धर्म-भाव उत्पन्न हुआ। 5.4 उस (काल) का 'दुसमा - सुसमा' (दुखमा - सुखमा ) यह नाम कहा गया। यह काल सहस्रों वर्षों (तक) रहा। 5.5 काल का वह समूह एक कोडाकोडी सागर की गणना का कहा गया।
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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