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________________ अपभ्रंश भारती 21 अक्टूबर 2014 कालावली की जयमाल रचयिता - अज्ञात अर्थ - प्रीति जैन 'कालावली की जयमाल' अपभ्रंश भाषा में रचित एक लघु रचना है। इसमें जैनदर्शन में मान्य काल (समय) के परिणमन की अवधारणा का संक्षेप में वर्णन किया गया है। इस रचना में रचयिता का नाम-समय आदि कुछ भी उल्लिखित नहीं है अतः यह रचनाकार के बारे में कुछ भी बताने में असमर्थ है। यह रचना दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के पाण्डुलिपि भण्डार में संगृहीत गुटका संख्या-55, वेष्टन संख्या-253 में पृष्ठ संख्या 6 से 9 पर लिपिबद्ध है। इस भंडार में इस रचना की अन्य प्रति उपलब्ध नहीं है। इस रचना में कुल सात कड़वक हैं। प्रथम कडवक में रचनाकार ने उन भावों-स्थितियों, वांछाओं का वर्णन किया है जो उसे संसार-चक्र से छुटकारा दिलाने में सहायक हों। द्वितीय कड़वक में अवसर्पिणी काल के प्रथम काल 'सुसमासुसमा' का वर्णन है। तृतीय कड़वक में द्वितीय काल 'सुसमा का वर्णन है। चतुर्थ
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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