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________________ अपभ्रंश भारती 21 59 'उल्लाल' 56 मात्रा का दंडक छन्द है, जिसमें 15, 13 पर यति होती है।22 _ 'रोला' छन्द 24 मात्रा का छन्द है, जिसमें सम-पदों में 13 और विषम पदों में 11 पर यति होती है। इसका स्वतंत्र तथा मिश्रित प्रयोग भी दर्शनीय है। 'पृथ्वीराज रासौ', सूरदास तथा नंददास ने इसका स्वतंत्र प्रयोग ही किया है। यथा - कुच वर जंघ नितंब निसा बढ्ढत धन बढ्ढी। लंक छीन उर छीन छीन दिन सीत सु चढ्ढी।। गिर कंदर तब जुगति जागि जोगीसर मंनं। ते लम्भे कविचंद वाम कामी सर धंनं ।। नन्ददास और सूरदास ने अन्त में दस मात्रा की एक लघु कड़ी जोड़कर शैली में संगीत का स्फुरण किया है - उनमें मोमैं हे सखा, छिन भरि अंतर नांहि। ज्यों देख्यौ मो माँहि वे, हों हूँ उनहीं मांहि।। __ तरंगिनि वारि ज्यों।।741125 दोहे के साथ इसका मिश्रित रूप अपभ्रंश के फागु-काव्यों में अवलोकनीय है - सरल तरल भुय वल्लरिय सिहण पीणघणतुंग। उदरदेसि लंकाउली य सोहइ तिबलतुरंग।।10।। अह कोमल विमल नियंबबिंब फिरि गंगापुलिणा। करिकर ऊरि हरिण जंघ पल्लव कर चरणा। मलपति चालति वेलहीय हंसला हरावइ। संझारागु अकालि बालु नहकिरणि करावइ।।11।।26 ‘संदेश-रासक' के भी छन्द 107, 148, 183, 191 तथा 199 इस दृष्टि से दर्शनीय हैं - झंपवि तम बद्दलिण दसह दिसि छायउअंबरु। उन्नवियउ घुर हुरइ घोरु घणु किसणाडंबरु।।
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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