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________________ अपभ्रंश भारती 21 __ जैन साधना का केन्द्रबिन्दु देह-देवालय में प्रतिष्ठित परम सत्ता स्वरूप शुद्धात्मा है। शुद्धात्मा का स्वसंवेदन शुद्धात्माभिरुचि संसार-शरीर-भोगों के प्रति उदासीनता, न्याय-नैतिक-सदाचारी जीवन और तत्त्वार्थ श्रद्धान के आलोक में होता है। इसमें गुरु-देशना (उपदेश) की प्रधानता है। पश्चात् आत्मरुचि के प्राबल्य से निर्मल एवं स्थिर मन में विशुद्ध परिणामों के विलय और शुद्ध परिणामों के आविर्भाव के समय अखण्डात्मानुभूति होती है। उस काल शुभाशुभ का विलय होकर मात्र ज्ञायक साक्षी भाव रहता है। इस प्रक्रिया को पाँच लब्धियों एवं अध्यात्म शैली में दर्शाया गया है। यह भावपूर्ण क्रिया है। इसी कारण आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि - ‘भावरहित साधु यद्यपि कोटि-कोटि जन्म तक हाथों को नीचे लटका कर तथा वस्त्र का परित्याग कर तपश्चरण करता है तो भी सिद्धि को प्राप्त नहीं होता।"20 सम्यक्त्व से ही निर्ग्रन्थ रूप प्राप्त होता है, मात्र बाह्य नग्न मुद्रा धारण करने से क्या साध्य है? जिनेन्द्र भगवान ने भावरहित नवतत्त्व को अकार्यकारी कहा है।21 जिनशासन में कोई वस्त्रसहित मुक्ति को प्राप्त नहीं होता भले ही वह तीर्थंकर क्यों न हो।22 बहुत शास्त्र पढ़ लेने से कोई आत्मज्ञानी नहीं होता; शास्त्र अन्य हैं और ज्ञान अन्य है। इसीप्रकार वनवास में कायक्लेशादि से साधु-सन्त नहीं हो जाता, किन्तु शुद्ध भाव होने पर होता है। संयम, नियम, तप तथा धर्मध्यान और शुक्लध्यान से परम समाधि होती है। इस सामग्री सहित अखण्ड अद्वैत परम चैतन्यमय आत्मा को जो नित्य ध्याता है, उसे वास्तव में परम समाधि है।24 कुन्दकुन्द के साथ परमात्मप्रकाश और पाहुड़दोहा में समाधि/परमसमाधि रूप रहस्यानुभूति के रूप में वर्णन मिलता है जो जैनदर्शन का गन्तव्य है। पाहुडदोहा में आध्यात्मिक रहस्यात्मक अभिव्यंजना पाहुड़दोहा का वर्ण्य विषय है - आत्मा और आत्मानुभव। इसके लिए दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं - प्रथम अपने आत्मस्वभाव का ज्ञान और निर्णय कर ज्ञानस्वभाव का आश्रय लेना और दूसरा शुद्धात्मानुभूतिपूर्वक स्व-परिणति को परमात्म तत्त्व में विलीन करना। इस सम्बन्ध में मुनि श्री रामसिंह का निम्न कथन उल्लेखनीय है - जिम लोणु विलिज्जइ पाणियहं तिम जइ चित्तु विलिज्ज। समरसि हवइ जीवडा काइं समाहि करिज्ज।।177।।
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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