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अपभ्रंश भारती 21
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रहस्यवाद की विशेषताएँ
रहस्यवाद की व्याख्या करना सरल नहीं है। रहस्यवाद स्वयं में रहस्यमय है। डॉ. ए.एन. उपाध्ये ने परमात्मप्रकाश की प्रस्तावना में गूढवाद (रहस्यवाद) की निम्न विशेषताएँ दर्शायी हैं - 1) यह मन की उस अवस्था को बतलाता है जो तुरन्त निर्विकार परमात्मा
का साक्षात् दर्शन कराती है। यह आत्मा और परमात्मा के बीच में पारस्परिक अनुभूति का साक्षात्कार है जो आत्मा और अन्तिम सत्य की एकता को बताता है। इसमें जीव अपनी पूर्णता और स्वतंत्रता का अनुभव
करता है। 2) इसका अनुभव करने के लिए ऐसी आत्मा की आवश्यकता है जो अपने
को ज्ञान और सुख का भण्डार समझे तथा अपने को परमात्मपद के योग्य
जाने। 3) यदि गूढ़वाद आध्यात्मिक और धार्मिक हो तो धर्म (आत्मा) को ध्येय
और ध्याता में एकत्व स्थापित करने का उपाय अवश्य बताना चाहिये। 4) गूढ़वाद साधारणतया संसार के सम्बन्ध में और विशेष कर सांसारिक
प्रलोभनों के सम्बन्ध में स्वाभाविक उदासीनता दिखाता है। 5) गूढवाद से उस सामग्री की प्राप्ति होती है जो लौकिक ज्ञान के साधन मन
और इन्द्रियों की सहायता बिना ही पूर्ण सत्य को जान लेती है। 6) धार्मिक गूढ़वाद में कुछ नैतिक नियम रहते हैं जो एक आस्तिक को अवश्य
पालने चाहिये। 7) गूढवाद सम्बन्धी रहस्यों का उपदेश करनेवाले गुरुओं का सम्मान करना
एक गूढ़वादी का कर्तव्य है।
उक्त बिन्दु रहस्यवाद के गंतव्य और उसकी प्रक्रिया आदि पर प्रकाश डालते हैं जो साधक के लिए अनुकरणीय है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जैन दर्शन, जो कि वेदान्त से भिन्न है, में रहस्यवाद किस प्रकार घटित होता है और वेदान्त के रहस्यवाद से उसमें क्या