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अपभ्रंश भारती 21
अक्टूबर, 2014
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मुनि रामसिंह कृत
पाहुडदोहा में अध्यात्म और रहस्यवाद : एक विवेचन
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डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल
जिन - शासन नायक भगवान महावीर ने तत्कालीन जनभाषा अर्द्धमागधी में धर्मोपदेश देकर सर्वकल्याणकारी अखण्ड चैतन्य आनन्दरूप आत्मा की अनुभूति द्वारा परमात्मपद की प्राप्ति के धर्मतीर्थ की स्थापना की थी। महावीर के निर्वाण के पाँच सौ वर्ष पश्चात् जैन साहित्यरूप प्रथम श्रुतस्कंध का सृजन जनभाषा प्राकृत में षट्खण्डागम सिद्धान्त ग्रन्थ के रूप में पुष्पदन्त और भूतबली द्वारा किया गया। आचार्य गणधर ने कषाय पाहुड की रचना की। प्रसिद्ध जैनाचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार, प्रवचनसार आदि 84 पाहुडों की रचना प्राकृत भाषा में की जो द्वितीय श्रुतस्कंध के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये पाहुड मूलतः अध्यात्मपरक हैं और दिगम्बर जैनधर्म की मूलआम्नाय की अवधारणा को पुष्ट करते हैं। इस दृष्टि से आचार्य कुन्दकुन्द मूलसंघ के आद्य संरक्षक माने जाते हैं। इसके पश्चात् एक हजार वर्ष तक प्राकृत भाषा में जैन - साहित्य की बहुआयामी रचनाओं का सृजन हुआ। यह प्राकृत भाषा जैन संदर्भ में 'जैन शौरसैनी' एवं 'जैन महाराष्ट्री' के रूप में चिह्नित की गयी। इस काल में प्राकृत की सहोदरा के रूप में संस्कृत भाषा में भी विपुल जैन - साहित्य का सृजन हुआ।