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________________ 20 मंदमंदारमयरंनंदणवणं..... मंदमंदारमयरंदनंदणवणं तरलदलताल-चललवलि - कयलीसुहं विल्ल-वेइल्ल-चिरिहिल्ल - सल्लइवरं करुणकणवीरर - करमर- करीरायणं कुसुमरयपयरपिंजरियधरणीयलं भमियभमरउलसंछइयपंकयसरं अपभ्रंश भारती 21 रुक्खरुक्खम्मि कप्पयरुसियभासिरी तिक्खनहचंचुकणइल्ल-खंडियफलं । मत्तकलयंठिकलयंठमेल्लियसरं । रइवराणत्त अवइण्णमाहवसिरी । महाकवि वीर जंबूसामिचरिउ, 4.16 उस नन्दनवन में मंदार की मंद मकरंद फैल रही थी; और वह कुंद, करवंद, (करौंदा ? ) मुचकुंद तथा चंदन वृक्षों से सघन था। वहाँ तरल पत्तोंवाले ताल, चंचल लवली और सुंदर कदली तथा द्राक्षा, पद्माक्ष एवं रुद्राक्ष के वृक्ष थे। बेल, विचिकिल्ल, चिरिहिल्ल, तथा सुंदर सल्लकी और आम, जंबीर (नींबू), जंबू, तथा उत्तम कदंब थे। कोमल कनैर, करमर, करीर (करील ? ), राजन (सं. राजादनी), नाग, नारंगी, व न्यग्रोध के वृक्षों से अंबर नीला (हरित) हो रहा था। कुसुमरज के प्रकर (समूह) से वहाँ का भूमिभाग पिंगलवर्ण हो गया था। शुकों के तीखे नख व चंचुओं से वहाँ के फल खंडित थे। घूमते हुए भ्रमरकुलों से पंकज-सरोवर आच्छादित और मत्त कलकंठियों के मधुर कंठ से स्वर छूट रहा था। रतिपति की आज्ञा से वृक्ष - वृक्ष में कल्पवृक्ष की शोभा से भास्वर माधव श्री (वसंत-शोभा) अवतीर्ण हुई। था, कुंद - करवंद - मचकुंद चंदणघणं । दक्ख- पउमक्ख - रुद्दक्खखोणीरुहं । अंबजंबीर - जंबू- कयंबूवरं । - नारंग - नग्गोहनीलंबरं । नाग अनु. डॉ. विमलप्रकाश जैन
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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