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________________ अपभ्रंश भारती 21 17 कवि सब कर्म-साधनों को व्यर्थ समझता है यदि वे आत्मदर्शन न करा सकें। वह ज्ञान भी व्यर्थ है जिससे आत्मज्ञान नहीं होता। कवि अहिंसा और दया को ही सबसे बड़ा धर्म समझता है। दसविध धर्म का सार अहिंसा ही है - दह विहु जिणवर भासियउ धम्मु अहिंसा सारु।।201।। मुनिश्री रामसिंह के ‘पाहडदोहा' और योगीन्दु के ‘परमात्मप्रकाश' एवं 'योगसार' में अनेक दोहे आंशिक या पूर्णरूपेण मिलते-जुलते हैं। ऐसे चौबीस दोहे हैं जो मुनिश्री रामसिंह और जोइंदु के ग्रन्थों के समानरूप से दृष्टिगत हैं। वस्तुतः काव्यकार मुनिश्री रामसिंह ने गुरुभाव को महत्ता देते हुए कर्मकाण्ड का कट्टरता से खंडन किया है। तीर्थयात्रा, मूर्तिपूजा, मंत्र-तंत्र आदि सबको व्यर्थ बताते हुए आत्मशुद्धि पर बल दिया है। इस प्रकार दोहों के उपहार के रूप में हम ‘पाहुडदोहा' से जीवन-मुक्ति का उपहार भी प्राप्त कर सकते हैं। राजस्थान निवासी मुनिश्री रामसिंह का ग्रन्थ 'पाहुडदोहा' उपदेशप्रधान है, अतः उपदेशात्मक वाणी में जीवन की सरल, सरस अनुभूति का समन्वय कर मुनिश्री ने इसे गूढ़ और सुन्दर बना दिया है। छंद भी ऐसा छोटा चुना है कि जिसमें थोड़े शब्दों में बहुत कहने की शक्ति समाविष्ट है। छंद की दृष्टि से इस कृति का मूल्यांकन करते हैं तो कल्पना हो जाती है कि किसप्रकार इस दोहे छंद में काव्यकार ने अपने गम्भीर विचारों को मानवीय दुर्बलताओं पर पूर्णतया विचार कर उपदेश के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत किया है। मुनिश्री का भाव कभी भी अपने भाषा ज्ञान या पाण्डित्य प्रदर्शन का नहीं रहा। ‘पाहुडदोहा' की भाषा पुरानी हिन्दी के निकट लगती है। भाषा समास-प्रधान एवं जटिल नहीं है। अवहट्ट की भाँति टकार प्रधान है। मुनिश्री की भाषा सांकेतिक है और सांकेतिक में इनकी समानता बौद्ध सिद्धों के चर्या-पदों और दोहाकोश से की जा सकती है।' 'पाहुडदोहा' में लोकोक्तियों और मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है। अनेक उपमाओं, रूपकों और हृदयस्पर्शी दृष्टान्तों द्वारा मुनिश्री ने अपने भावों को अभिव्यक्त किया है। दोहों में वाग्धाराओं के अभिदर्शन होते हैं। अलंकारों पर मुनिश्री का अपना प्रादेशिक प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित है। उन्हें अपना प्रदेश प्रिय है। चंचल मन की उपमा मुनिश्री ने 'करहा' से की है। ‘करहा' शब्द का अर्थ होता है - 'ऊँट'। ऊँट
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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