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________________ 18 अपभ्रंश भारती 21 चलने में अत्यंत चंचल होता है। इसीलिए मन की चंचलता का मानदण्ड 'करहा' शब्द से यही है। काव्यकार ने उपमाओं और रूपकों का प्रयोग प्रचुरता से किया है। यथा - पाँच इन्द्रियों को पाँच बैल, आत्मा को नन्दनकानन, देह को देवालय या कुटी, आत्मा को शिव, इन्द्रिय वृत्तियों को शक्ति इत्यादि। अपने को स्त्री, आत्मा को प्रिय मान उसको प्राप्त करने और उसमें एकाकार हो जाने की भावना दर्शनीय है। समाज की रूढ़ियों का खण्डन और मानवता के धरातल पर खड़े होकर समरसता, चित्तशुद्धि पर जोर, बाह्याचार का विरोध समरसी भाव से स्वसंवेद्य आनन्द का उपभोग तथा शिवपरमपद कैवल्य की प्राप्ति आदि का प्रचार-प्रसार काव्यकार मुनिश्री रामसिंह के ‘पाहुडदोहा' का उद्देश्य रहा है। निर्वेद की भावनाएँ 'पाहुडदोहा' में सर्वत्र मिलती है। शांतरस की अनुभूति के द्वारा हम संसार के प्रति कुछ ऐसे मनोभावों की निष्पत्ति अनुभव करने लगते हैं जिनसे हृदय शांति प्राप्त करता है तथा जो इस कोलाहल से दूर कहीं एकांत में जाकर साधना करने पर ही हो सकता है। इस दृष्टि से मुनिश्री रामसिंह जैन रहस्यवादी काव्यकार ठहरते हैं और उनका ‘पाहुडदोहा' आदिकाल की अनेक ग्रंथियों को सुलझाने में अपनी महती भूमिका अदा करता है। 1. डॉ. आदित्य प्रचण्डिया, अपभ्रंश भाषा का पारिभाषिक कोश, खण्ड एक, तारामण्डल, अलीगढ़, सन् 1999, पृष्ठ 64. 2. डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन, अपभ्रंश भाषा और साहित्य, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, सन् 1965, पृष्ठ 81. डॉ. नामवर सिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृष्ठ 265. 4. डॉ. आदित्य प्रचण्डिया, अपभ्रंश आलोक, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद, 2008, पृष्ठ 15. ___डॉ. आदित्य प्रचण्डिया, अपभ्रंश भाषा का पारिभाषिक कोश, खण्ड एक, तारामण्डल, अलीगढ़, सन् 1999, पृष्ठ 64. डॉ. रामसिंह तोमर, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य, हिन्दी परिषद् प्रकाशन प्रयाग, 1964, पृष्ठ 77. 6.
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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