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________________ अपभ्रंश भारती 21 मुनिश्री रामसिंह ने धर्म की शास्त्रीय रूढ़ियों और बाह्याडम्बरों के प्रतिकूल जीवन - मुक्ति तथा कैवल्य का असाधारण उपदेश दिया है। उद्देश्य में व्यापकता और विचारों में सहिष्णुता होने के कारण मुनिश्री की पारिभाषिक पदावली और काव्य शैली भी सहज - सामान्य और लोक - प्रचलित हो गई है। 'दोहापाहुड' अध्यात्म चिन्तन के कारण आध्यात्मिक काव्य है। मुनिश्री ने इस रचना में आत्मानुभूति और सदाचरण के बिना कर्मकाण्ड की निस्सारता का प्रतिपादन किया है। सच्चा सुख इन्द्रियनिग्रह व आत्मध्यान में विद्यमान है।' मोक्षमार्ग प्राप्त्यर्थ विषयपरित्याग परमावश्यक है। मुनिश्री ने गुरु की महत्ता प्रतिपादित की है। ' 'पाहुडदोहा ' में क्रमबद्धरूप से विषय विवेचन नहीं मिलता है।' मुनि रामसिंह गुरु को साधनापथ का मार्गदर्शन कराने के लिए अत्यन्त आवश्यक मानते हैं। गुरु, सूर्य, चन्द्र, दीपक, देव सब कुछ हैं क्योंकि वह आत्मा और पर के भेद को प्रकट करता है, गुरु द्वारा बोध प्राप्त हुए बिना लोभ-भ्रम में पड़े रहते हैं। योग्य गुरु मन के द्वैतभाव को नष्ट कर देता है तथा मन की व्याधि को शान्त कर देता है। मुनिश्री का मानना है कि आत्मसुख श्रेष्ठ है। विषयों का भोग करते हुए भी जो निर्लिप्त रहते हैं, शाश्वत सुख प्राप्त करते हैं। विषय सुखों में लिप्त रहनेवाले नरकगामी होते हैं। मन की शुद्धि और निश्छलता से परलोक प्राप्त होता है। 14 आत्मा और देह की बात करते हुए मुनिश्री कहते हैं कि वर्णादिभेद देह के हैं। आत्मा अजरामर, ज्ञानमय है। आत्मा को जान लेने पर और कुछ जानने को नहीं रहता, वह परमात्मा, अनन्त और त्रिभुवन का स्वामी है। मन के परमेश्वर से मिल जाने की दशा को मुनि ने 'समरस दशा' नाम दिया है। जिसप्रकार लवण पानी में विलीन हो जाता है उसीप्रकार चित्त परमात्मा में विलीन होकर समरस हो जाता है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि समरस्य भाव उस युग की एक महत्त्वपूर्ण साधना है। सभी साधनमार्ग इस शब्द का व्यवहार करते हैं। उनके अलग-अलग तत्त्ववाद हैं। उन्हीं से इन व्याख्याओं का पोषण होता है पर परिणाम में व्यवहारतः सब एक हैं। 7 मुनिश्री रामसिंह लिखते हैं 'मन जब परमात्मा से साक्षात्कार कर लेता है और परमात्मा का जब मन से मिलन हो जाता है तो दोनों का सामंजस्य या समरसी भाव हो जाता है। 98 अतः ऐसी स्थिति में साधक -
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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