________________
अपभ्रंश भारती 21
प्रकृति वर्णन - में सूर्यास्त, संध्या, सूर्योदय, चन्द्रोदय व ऋतु वर्णन उल्लेखनीय हैं। ‘पासणाह चरिउ' में पद्मकीर्ति ने सूर्यास्त-संध्यागम में मानवीय गतिविधि को देखा है। सूर्य को कवि ने मानवी रूप में उपस्थित कर उसके द्वारा उसकी तीन अवस्थाओं का वर्णन करा कर उससे मानव को प्रतिबोधित किया है - सूर्य का कथन है कि प्रत्येक मनुष्य की तीन अवस्थाएँ - उदय, उत्कर्ष एवं अस्त होती हैं। उदय के समय देवता भी उसे प्रणाम करते हैं, उत्कर्ष के समय वह संसार के ऊपर छाकर उसका भला करता है, पर जब उसके अस्त का समय आता है तब सहोदर भी उसकी सहायता को नहीं आते। जो साथ थे वे भी छोड़ देते हैं। अतः मनुष्य को अस्त के समय दुःखी नहीं होना चाहिये। सूर्य का जो वर्ण उदय काल में था, वही अस्त होते समय था। सही है जो उच्च कुल में उत्पन्न होते हैं वे सम्पत्ति-विपत्ति में समान रूप से रहते हैं।
अहवा महंत जे कुल पसूय ते आणय विहिहि सरिस रूप॥
सूर्य अस्त होते समय आकाश में विशाल किरण-समूह से रहित हुआ। सच है - जो अपने अंग से उत्पन्न हुए हैं वे भी विपत्ति में सहायक नहीं होते -
अंगुब्भवाहि अहवइ मुझंति, आवइहि सहिन्नो णाहि हतो।।
अस्त होता सूर्य कहता है - लोगो, मोह मत करो। मैं रहस्य बताता हूँ - मैं सकल संसार को प्रकाशित करता हूँ। तम के तिमिर पटल का छेदन करता हूँ। सुर-असुर मुझे प्रतिदिन नमस्कार करते हैं तो भी मुझमें तीन अवस्थाएँ हैं - मेरा उदय, उत्कर्ष और अवसान होता है। यह अध्रुव की परम्परा है। तब अन्य लोगों की बात ही क्या? कवि का कथन है - दिनकर को अस्त होने का सोच नहीं, वह तो मनुष्यों को व देवों को ज्ञान देता है, स्वयं आपदाग्रस्त होते हुए भी दूसरों का उपकार करना, यही महान् कवियों का स्वभाव है। (10.8.8)
संध्या वर्णन में कवि ने एक रूपक बाँधा है - संध्या नायिका है, सूर्य नायक प्रेमी। (यह) सूर्य नायक नायिका के प्रति अनुरक्त होते हुए भी तबतक नायिका के पास नहीं जाता जबतक कि वह अपना कार्य पूर्ण नहीं कर लेता। सच है, जो महान व्यक्ति होते हैं वे अपना कार्य सम्पन्न करके ही घर-परिवार में (महिलाओं में) अनुरक्त होते हैं।
अहवा महंत जे णर सलज्ज, ते रमहि महिलसु समत्त कज्ज।।10.9.5॥