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अपभ्रंश भारती 21
मायावंत सील - वय - वज्जिय, पर-वंचण रय अप्पुण कज्जिय । सहि अयारह णाहि लइज्जहिं, पसवह योणिहि ते उपज्जहि ।।
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जे लोइ मोह धणगीढ रिसि गुरु देवहं णिंदयइ ।
थावर जंगम जीवहि फुडउ तिरिक्खहि जाहि गर ।।41 ।। 'पासणाह चरिउ' में जैन आचार-विचार एवं सिद्धान्त संबंधी अनेक तत्त्व मिलते हैं। सम्यक्त्व का स्वरूप, श्रावक एवं मुनि धर्म, कर्म सिद्धान्त, विश्व के स्वरूप का विकास आदि। सामाजिक व्यवस्थाओं का स्वरूप कम ही चित्रित हुआ है। उस समाज में शकुनों पर अत्यन्त विश्वास था। पार्श्व के ( अपने मामा की सहायतार्थ) युद्ध हेतु प्रस्थान करते समय नाना शकुन मिलते हैं। कवि का कथन है कि ये शकुन फल देने में चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र आदि की अपेक्षा अधिक समर्थ हैं
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तं करइ वारु णक्खतु ण वि जोग दिवायर चंद बलु। जं पंथि पयट्टहा माणुसहो करहि असेस वि सउण फलु ।। 10-15 ।।
ये शकुन (गज, वृषभ, सिंह, कपोत, कोयल की कूक, सारस, हंस का स्वर, स्वर्ण, कमल, पानी, ईख, शुभ्र वस्त्र, केश, प्रज्वलित अग्नि, तन्दुल, कुमारियाँ, माला, कुम्भ कलश) राह चलते मनुष्य को जो फल देते हैं दिन, नक्षत्र, ग्रह, योग, सूर्य या चन्द्रमा का बल वह फल नहीं देता।
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शकुनों के साथ उस समाज में ज्योतिष शास्त्र में भी अटूट श्रद्धा थी। विवाह के प्रसंग में वर-वधू की कुंडलियों तथा शुद्ध वार, तिथि आदि का विचार आवश्यक था। इस विषय में 'पउम कवि' ने विस्तार से विवेचन किया है, जिससे उनके ज्योतिषज्ञ होने का प्रमाण मिलता है। ( 13-6.7) रवि कीर्ति की कन्या प्रभावती का पार्श्व के साथ विवाह प्रस्ताव पर ज्योतिषी का मत है। अनुराधा, स्वाति, तीनों उत्तरा, रेवती, मूल, मृगशिरा, मघा, रोहिणी, हस्त, इन नक्षत्रों में विवाह कहा गया है। पाणिग्रहण किसी मठ या विशाल मन्दिर पुण्योत्सव किये जायें। इन नक्षत्रों में गुरु, बुद्ध, शुक्र इष्ट हैं। शेष वार दोषयुक्त हैं। वर और कन्या की आयु की गणना कर तथा त्रिकोण और षष्टाष्टक दोनों को त्याग कर तुला, मिथुन और कन्या राशियों में उत्तम विवाह होता है। यदि समस्त गुणों से युक्त लग्न किसी भी प्रकार से न मिल रहा हो तो गोधूलि बेला में विवाह दोषहीन होता है।