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________________ अपभ्रंश भारती 21 आकर उनकी रक्षा करते हैं। अन्त में कमठ सर्वत्र इन्द्र के वज्राघात से त्रस्त हो त्राण के लिए पार्श्व की ही शरण में जाता है। उनसे क्षमा-याचना करता है। पार्श्व अपना शेष जीवन धर्मोपदेश द्वारा जन-जन का कल्याण करते हुए सम्मेदशिखर से 100 वर्ष की आयु में मोक्ष प्राप्त करते हैं। उत्तरपुराण में पार्श्व के माता-पिता के नाम ब्राह्मी और विश्वसेन हैं। पासणाह चरिउ में हयसेन व वामादेवी हैं। यहाँ इन्द्र ने बालक का नाम पार्श्वरूपा रखा, अन्यत्र वामादेवी को गर्भावस्था में स्वप्न में पार्श्व में सर्प देखने से 'पार्श्वनाथ' रखा गया। पार्श्व के विवाह का प्रसंग अन्यत्र नहीं मिलता। पद्मकीर्ति ने तापसी के साथ हुई घटना तथा सर्प की मृत्यु को पार्श्व के वैराग्य का कारण माना है। यद्यपि उत्तरपुराण में इस घटना का उल्लेख अवश्य है; पर वह वैराग्य का कारण नहीं। उत्तरपुराण के अनुसार इस समय पार्श्व की आयु 16 वर्ष की थी; जबकि वैराग्य 30 वर्ष की आयु में हुआ जब अयोध्या से आये दूत के मुख से ऋषभदेव का वर्णन सुनने से पार्श्व को जाति-स्मरण हुआ। पुष्पदन्त और वादिराज ने कमठ की घटना का वर्णन तो किया है, पर उसे वैराग्य का कारण नहीं माना। यह एक साम्य है कि सर्वत्र दीक्षा के समय आयु 30 वर्ष है। माघ शुक्ला 11 को दीक्षा लेने के बाद पार्श्व के ध्यानमग्न हो जाने के बाद कमठ द्वारा पार्श्व को ध्यान से विचलित करने के लिए किये गये प्रयत्नों का वर्णन पद्म ने किया है। उत्तर पुराण व अन्य ग्रन्थों में विघ्नहर्ता शंकर हैं। पद्म ने 'मेघमालिन' नाम दिया है। पार्श्व पर किये गये अत्याचारों के प्रसंगों में धरणेन्द्र नाम के नाग का उल्लेख अनेक ग्रन्थों में हुआ। उत्तरपुराण आदि में इसे नाग का ही जीव माना है, जिसे कमठ ने अपने प्रहारों से मरणासन्न कर दिया था और जिसके कान में पार्श्व ने णमोकारमंत्र उच्चारित किया था, जिसके कारण वह देव योनि पा सका। यही धरणेन्द्र पार्श्व की रक्षा करता हुआ सभी ग्रन्थों में बताया गया है। निर्वाणस्थली सम्मेदशिखर तथा 100 वर्ष की आयु में मोक्ष पर सब एकमत हैं। ___'पासणाह चरिउ' का सम्पूर्ण आख्यान कर्म सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है। पार्श्वनाथ अपने प्रत्येक उत्तरोत्तर जन्म में अधिकाधिक अच्छे कार्य करते हुए बताये गये हैं और फलतः ऊँचे से ऊँचे स्वर्गों में स्थान पाते हैं। इसके विपरीत कमठ अपने जन्मों में बुरे से बुरे कर्म करता है और इसी संसार में तथा नरकों
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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