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________________ अपभ्रंश भारती 21 है। यदि कुछ भेद भी है तो वह उसके दसवें भव में मिलता है, जब मरुभूति का जीव पार्श्व के रूप में जन्म लेता है। उत्तरपुराण के अनुसार 10वें भव में कमठ का जीव एक राजा महीपाल के रूप में उत्पन्न हुआ, जो पत्नी के वियोग से दुःखी होकर तपस्वी बना। जबकि पासणाह चरिउ के अनुसार 9वें भव के पश्चात् कमठ का जीव चार बार तिर्यग्योनि में और चार बार नरक में उत्पन्न होने के बाद केवट के रूप में और फिर एक ब्राह्मण के कुल में जन्म लेता है। यही ब्राह्मण दरिद्रता से दुःखी होकर कमठ नामक तापसी बनता है। इसी के आश्रम को देखने पार्श्व वन में जाते हैं। दिगम्बर परम्परा में पार्श्व के पूर्व भवों के वर्णन की शैली उत्तरपुराण में निश्चित की जा चुकी थी; उसे ही पुष्पदन्त ने अपने महापुराण में और वादिराज सूरि ने अपने पार्श्वनाथ चरित्र में अपनाया। पद्मकीर्ति ने भी पासणाह चरिउ उसी परम्परा में लिखा। पार्श्व के वर्तमान जीवन की झाँकी इसप्रकार है 6 - वाराणसी नगरी के राजा हयसेन और रानी वामा देवी के यहाँ पार्श्व का जन्म हुआ। अन्य तीर्थंकरों के सदृश इनके भी कल्याणक सम्पन्न हुए । जब पार्श्व 31 वर्ष के थे तब हयसेन की राजसभा में कुशस्थल (कन्नौज) के राजा शक्र वर्मा ( श्वसुर ) का दूत आकर उनकी दीक्षा के समाचार देता है। फिर रविकीर्त्ति पर यवनराज के आक्रमण के समाचार सुनकर राजा हयसेन उसकी रक्षार्थ जाने को उद्यत होते हैं; परन्तु राजकुमार पार्श्व उन्हें रोककर स्वयं जाते हैं और यवनराज पर विजय पाते हैं। प्रसन्न होकर रविकीर्त्ति अपनी कन्या से पार्श्व के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं, जिसे पार्श्व स्वीकार करते हैं। एक दिन नगर निवासियों के साथ पार्श्व भी कुशस्थली के पास वन में तापसी के पास जाते हैं; जहाँ वे कमठ को अग्नि में उस लकड़ी को डालने से रोकते हैं जिसमें सर्प का जोड़ा होता है; परन्तु कमठ नहीं मानता। उसके प्रहारों से वह सर्प-जोड़ा घायल हो जाता है। पार्श्व उस घायल नाग-युगल को पंच नमस्कार मंत्र सुनाते हैं। घायल नाग-युगल की मृत्यु हो जाती है। पार्श्व के पंच नमस्कार मंत्र सुनाने से वे नाग-नागिन स्वर्ग में धरणेन्द्र और पद्मावती बनते हैं। उधर सर्प की मृत्यु व जगत की असारता को देख पार्श्व को वैराग्य हो जाता है। वे दीक्षा लेते हैं। पार्श्व भी वन में कायोत्सर्ग-तपसाधना में लीन रहते हैं। कमठ तापसी मरकर असुरेन्द्र बनता है, वह मेघमाली भट के रूप में आकर पार्श्व पर वज्राघात, भयंकर तूफान, शस्त्रों के प्रहार, मेघों की वृष्टि द्वारा उनका ध्यान भग्न करना चाहता है; पर वह असफल होता है। पार्श्व अपने अविचलित शुक्लध्यान से कैवल्य को प्राप्त करते हैं। इससे पूर्व नागराज
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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