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________________ अपभ्रंश भारती 21 - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पोदनपुर नगर का शासक अरविन्द था। प्रभावती उसकी रानी थी। उसी नगरी में वेद-शास्त्रज्ञ विश्वभूति नामक ब्राह्मण राजपुरोहित था। अनुद्धरि उसकी पत्नी थी। इनके कमठ और मरुभूति दो पुत्र थे। ज्येष्ठ पुत्र कमठ चंचल स्वभावी था। कनिष्ठ पुत्र मरुभूति महानुभाव था। ये दोनों क्रमशः विष और अमृत से बनाये गये थे। कमठ की पत्नी 'वरुणा' शीला-शुद्धाचारिणी थी; जबकि मरुभूति की पत्नी वसुंधरी विपरीत आचरणवाली थी। विश्वभूति के पश्चात् राजा ने मरुभूति को नीतिज्ञ और सदाचारी मानकर राजपुरोहित बना दिया। एकबार मरुभूति को राजा के साथ विदेश जाना पड़ा। इसकी अनुपस्थिति में कमठ ने सारी मर्यादाओं को ताक में रखकर छोटे भाई की पत्नी वसुन्धरा से प्रेम करना शुरू कर दिया। जिसे वरुणा ने देख लिया, उसने अपने देवर मरुभूति को विदेश से लौटने पर यह बता दिया। पहले तो मरुभूति ने इस पर विश्वास नहीं किया; पर दूसरे दिन अर्द्धरात्रि को अपने ही शयनकक्ष में इनकी प्रेम-लीला अपनी आँखों से देखी और राजा से शिकायत की। उसने कमठ को देश-निकाला दे दिया। कुछ दिनों बाद मरुभूति में भ्रातृत्व भाव जागा और कमठ से राजा के मना करने पर भी मिलने गया। कई दिनों भूखे-प्यासे मरुभूति ने कमठ को जंगल में तापसी वेश में देखा, क्षमा माँगी पर कमठ ने क्रोधावेश में मरुभूति को पत्थरों से मार डाला। मरुभूति मरकर हाथी बना, कमठ सर्प बना। वरुणा हथिनी बनी। इसके बाद नवें भव तक मरुभूमि का जीव अपने सत्कर्मों से उत्तरोत्तर श्रेष्ठ जन्म-चक्रायुध, कनकप्रभ आदि राजकुमार एवं इन्द्र बनकर दसवें भव में राजा हयसेन के यहाँ पार्श्वनाथ बना और पापी कमठ अपने दुष्कर्मों से सर्पादि योनियों एवं अनेक नरकों में यातनाएँ भोगता हुआ अन्त में मेघमालीभट तापसी बना। परन्तु कुकृत्य नहीं छोड़ पाया। प्रत्येक जन्म में मरुभूति के जीव को कमठ के (जीव के) द्वेष का शिकार होना पड़ा है। कमठ का जीव अपने दुष्कर्मों से नरक एवं तिर्यंच योनियों में आकर प्रत्येक भव में पार्श्व के प्रति हिंसा का ताण्डव नृत्य करता है। उत्तरपुराण में कमठ और मरुभूति के बीच बैर-बंध के कारण को केवल एक श्लोक में ही दिया है; जबकि 'पासणाह चरिउ' में बैर-बंध के कारण को पापाचार की एक पूरी कथा में परिणत कर कवि ने अपनी कल्पना एवं मौलिकता का परिचय दिया है। ग्रन्थकारों ने कमठ के जीव के जन्मों में विशेष परिवर्तन नहीं किये हैं। उसके जन्मों का जो क्रम उत्तरपुराण में दिया है वही उत्तरकालीन ग्रन्थों में मिलता
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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