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________________ अपभ्रंश भारती 21 “पउमकित्ति मुणिपुंगवहो, देउ जिणेसरु विमलमइ॥". अतः कवि का पूर्ण नाम 'मुनि पद्मकीर्ति' है। 'पासणाह चरिउ' के अन्तिम कडवक में कवि ने अपनी गुरु-परम्परा का जो उल्लेख किया है उसके अनुसार ये सेन संघ के माधवसेन-जिनसेन के शिष्य थे। इन्होंने अपने माता-पिता का कहीं उल्लेख नहीं किया है। सामान्यतः जैन मुनि गृहस्थ जीवन से विरक्त होते हैं अतः वे उन आचार्यों का स्मरण करते हैं जो उन्हें भवसागर से पार उतरने का मार्ग दिखाते हैं। कवि की गुरु-परम्परा में समस्त आचार्य सेन संघ के थे। सेन संघ दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध संघ रहा है। इसी संघ में धवला टीकाकार वीरसेनाचार्य तथा आदिपुराण के रचयिता जिनसेनाचार्य जैसे रत्न उत्पन्न हुए हैं। अतः पद्मकीर्ति दाक्षिणात्य थे। 'पासणाह चरिउ' की अन्तिम प्रशस्ति' जिसमें इसका रचनाकाल श.सं. 999 (वि.सं. 1134 कार्तिकी अमावस्या) दिया है, में कवि के व्यक्तित्व पर यत्किंचित प्रकाश पड़ता है - ‘पउम कवि ने पार्श्वपुराण की रचना की, पृथ्वी पर भ्रमण किया और जिनालयों के दर्शन किये। अब उसे जीवन-मरण के सम्बन्ध में कोई सुख-दुःख नहीं। श्रावक कुल में जन्म, जिन-चरणों में भक्ति तथा कवित्व - ये तीनों, हे जिनवर ‘पद्म' को जन्मान्तरों में प्राप्त हों।' मुनि पद्मकीर्ति ने ‘पासणाह चरिउ' को 18 संधियों में विभक्त किया है। संधियाँ पुनः कडवकों में विभक्त हैं। प्रत्येक संधि में कडवकों की संख्या भिन्न है। 14वीं संधि में सर्वाधिक कडवक हैं। पूरे ग्रन्थ में 314 कडवक हैं। प्रायः एक कडवक में 10-12 पंक्तियाँ हैं, पूरे ग्रन्थ में पंक्तियों की संख्या 3640 है। कवि के अनुसार यह काव्य पूरा प्रामाणिक है। ऋषियों द्वारा जो भी तत्त्व निर्धारित किया गया है, वह सब इस ग्रन्थ में अर्थभरे शब्दों में निबद्ध है। जो ऋषियों ने पार्श्वपुराण में कहा है, जो गणधरों, मुनियों और तपस्वियों ने बताया है तथा काव्य-कर्ताओं ने निर्दिष्ट किया है, वह मैंने इस ग्रन्थ में प्रकट किया है। जिससे तप व संयम का विरोध होता हो वह मैंने नहीं किया। जिससे सम्यक्त्व दूषित होता हो उस आगम से भी मेरा कोई प्रयोजन नहीं, क्योंकि विपरीत सम्यक्त्व 1. 'पासणाह चरिउ' की पाण्डुलिपि आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर (वर्तमान जैनविद्या संस्थान, श्री महावीरजी) में उपलब्ध है। लिपिकाल सम्वत् 1473 है।
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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