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________________ अपभ्रंश भारती 21 7.5 7.6 7.7 7.8 धण-धरहिय दुव्वल सरीर आहार कंद उंवर करीर क - विक्क वर ववहार- चुक्क रस तेल हीण पंगु रणमुक्क कम्मह अणिट्ठ पाविट्ठ दुट्ठ गलगंड वाहि संगहिय धिट्ठ खर फरस परोपर अप्प चित्त होसई अवरोप्परु कुहिय कु+ि गत्त धन-धान्य से रहित दुर्बल शरीर आहार - भोजन कंद फल उदम्बर फल जंगली वृक्षों के (फल) क्रय-विक्रय (व्यापार) श्रेष्ठ व्यवहार से च्युत/ भ्रष्ट प्रेम स्नेह रहित, न्यून विकलांग पलायनवादी कर्म अनिष्ट, अप्रिय अत्यन्त पापी दुष्ट दुर्विनीत (विनयरहित) व्याधि संग्रहित ढीठ (धृष्ट) निष्ठुर कठोर आपस में / परस्पर अल्प-कम बुद्धि, ज्ञान होंगे परस्पर कुत्सित मन देह 111
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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