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अपभ्रंश भारती 21
णाउ
जणु कालवसें मणे किसिय काउ तहि
4.3
एक्क
पल्लु आवसु कहंति अवसाणि
नाम लोग काल के वश (काल के प्रभाव से) विमर्शसूचक अव्यय दुर्बल काया वहाँ एक पल्य अवस्थान/आयु/पड़ाव कहते हैं अवसान पर (अन्त में) देह को छींकते (हुए) मरते हैं / छोड़ते हैं उत्पन्न होता है जाकर स्वर्ग लोक में पल्योपम
पिंडु
छिकइ
4.4
मुयंति उपज्जहि जायवि सग्ग-लोइ पल्लोपम आउसु एक्क होइ
आयु
एक
होती है
4.5
जो
जुयल भोयभूमिहि मरंति खीरोवहि
युगल (जोड़ा) भोगभूमि में मरते हैं क्षीर-समुद्र में देह, शरीर व्यन्तर जाति के देव डालते हैं
पिंडु
वितर खिवंति