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अपभ्रंश भारती 21
4.6
4.7
4.8
4.9 घत्ता
अवसप्पिणि'
आयहिं
तिण्णिकाल
वर
भोयभूमि
सम
सुह
विसाल
अवसप्पणि
अवसाणि
होंति
वढत्तु
आउ
सुहु
अणु
हवंति
उच्चत्त
आसि
तहि
कालि
को
गउ
कोडा कोडिउ
दुइ
असेसु अवसाणि
तासु
वहु
अवसर्पिणी (काल के)
आगमन पर
तीसरा काल
श्रेष्ठ
भोगभूमि (के)
समान
सुख
व्यापक, अधिक
अपसर्पिणी के
अवसान (समाप्ति) पर
होते हैं
विकास
आयु
सुख
अल्प, कम
होते हैं
पतित ( कम )
हुए
तब
आयु
लंबाई (परिमाण)
व्यतीत हो गया, बीत गया
कोडाकोडी
दो
पूर्ण, पूरा, संपूर्ण
अन्त में
उस (काल) के बहुत
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1. ऐसा काल जिसमें जीवों (मनुष्य, तिर्यंच आदि) की आयु, बल, ऊँचाई, सम्पदा आदि घटने लगती है, वह काल अवसर्पिणी कहलाता है, जिस काल में इनमें वृद्धि होती है वह उत्सर्पिणी कहलाता है।