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अपभ्रंश भारती 21
101
तह
देहि
वत्थ
जुयलहं
महंतु 3.10 घत्ता जं
अण्णभवंतरि भावें दाणु सुपत्तहं दिण्णउ
वहाँ देह पर वस्त्र युगल (स्त्री-पुरुष के जोड़े) उत्तम, श्रेष्ठ जो कुछ अन्य भवान्तर में भाव से, भावपूर्वक दान सुपात्रों के लिए दिया गया कारण महान कल्पवृक्ष विशेष रूप से वांछनीय तीर्थ
पुण्य
उत्पन्न होने के लिए
कप्प-महातरु वेर्सि तित्थु पुण्णि
उप्पण्णउं सुखमा-दुखमा 4.1
उप्पण्णउ तिज्जउ कालु आसि किंचूण
उत्पन्न (हुआ) तीसरा काल हुआ कुछ (थोड़ा) कम
किंप्पि
कुछ भी
सो सुक्ख-रासि
वह सुख-समूह, सुखराशि उस (काल) का सुखमा-दुखमा
4.2
तहो
सुसमु-दुसमु
यह
कहिउ
कहा गया