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अपभ्रंश भारती 21
विलसहि मिहुणइ विविह
णवि कोहु मोहु भउ आवइ णवि जर मरण-अकालि
भोगता है स्त्री-पुरुष का युग्म, जोड़ा, युगल विभिन्न प्रकार के सुख न ही क्रोध मोह भय प्राप्त होता है, आता है न ही जरा (बुढ़ापा). अकाल-मरण (अकाल में मरण) उनका
तहो
सुखमा
3.1
तहो कालहो
पछइ
सुसमु कालु उप्पण्णु आसि
उस (के) काल के पश्चात्, बाद (सुखमा) सुषमा काल उत्पन्न हुआ (था) हुआ बहुत सुख व्यापक, उत्तम ऊँचाई
वहु
सुह
विसालु
3.2
थी
उच्चतु आसि दुइ कोस
वेद
णवि
कोस शरीर, देह न ही इष्ट, प्रिय का, वांछित वियोग
विउंड