________________
दोहों में वाग्धाराओं के अभिदर्शन होते हैं। अलंकारों पर मुनिश्री का अपना प्रादेशिक प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित है।" ___ “मुनिश्री रामसिंह जैन रहस्यवादी काव्यकार हैं, उनका ‘पाहुडदोहा' आदिकाल की अनेक ग्रन्थियों को सुलझाने में अपनी महती भूमिका अदा करता है।" ___“ ‘पाहुडदोहा' की गाथा 212 में कवि ने अपना नाम 'मुनि रामसिंह' के रूप में घोषित किया है।" ___ “मुनि रामसिंह के समय की निम्नतम सीमा सातवीं शताब्दी तथा अधिकतम सीमा नौवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है।"
“भाषा शैली के आधार पर हम मुनिश्री को दसवीं शताब्दी के आस-पास का मान सकते हैं।"
“अन्तिम कुछ पद्यों को छोड़कर शेष दोहारूप में हैं। इस प्रकार यह दूहा काव्य है और अपभ्रंश भाषा की श्रेष्ठ रचना है।" ___ "मात्रा छन्दों के विकास में अपभ्रंश काल में तुकांत प्रवृत्ति का प्रभाव यह हुआ कि अनेक लोक-गीतों की धुनें एवं लोक-नृत्यों की तालें भी यहाँ विविध छन्दों के उदय की मूलभूता बन गईं।" ___ “भाषा के विकास-क्रम में हिन्दी भाषा का सीधा सम्बन्ध अपभ्रंश के साथ है। इसी से उसका साहित्य अपने प्रारंभ काल में न केवल उन्हीं प्रवृत्तियों से पूर्णतः प्रभावित है प्रत्युत काव्य-रूप एवं छन्द-योजना की दृष्टि से भी अपने परवर्ती रूप में बहुत दूर तक उसी का अनुवर्तक है। अतः अपभ्रंश की इस महत्त्वपूर्ण कड़ी को भुलाकर हिन्दी के विकास की परिकल्पना नहीं की जा सकती।"
“निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि अपभ्रंशकालीन छन्द-सम्पदा निश्चय ही बड़ी समृद्ध एवं पुष्ट रही है और अपने परवर्ती हिन्दी काव्य की उपजीव्य बनकर, लम्बे समय तक उसे प्रभावित करती रही है, जिसके लिए हिन्दी साहित्य उसका चिर-ऋणी रहेगा। वस्तुतः ये सभी जैन तथा जैनेतर कवि वीतरागी एवं आध्यात्मिक थे। परन्तु अपनी इस आध्यात्मिक निधि को लोक-जीवन के लिए कल्याणकारी बनाने के हिमायती थे। इसी से लोकभाषा और लोकछन्दों की गीतात्मकता और सरसता का इन्होंने प्रश्रय लिया तथा चिरंजीवी साहित्य का सृजन किया जो शताब्दियों के बाद आज भी किसी न किसी प्रकार लोक-जीवन की अक्षय निधि बना है। निस्संदेह ये सभी सच्चे अर्थों में