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“पाहुडदोहा का वर्ण्य विषय है - आत्मा और आत्मानुभव। इसके लिए दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं - प्रथम - अपने ज्ञानस्वभाव का ज्ञान और निर्णय कर ज्ञानस्वभाव का आश्रय लेना और दूसरा - शुद्धात्मानुभूतिपूर्वक स्व-परिणति को परमात्म तत्त्व में विलीन करना।"
" ‘पाहुडदोहा' विशुद्ध अध्यात्मपरक एवं रहस्यवादी रचना है। इसमें धर्म के नाम पर प्रचलित पाखण्ड का विरोध ओजस्वी स्वरों में किया है। आराधना हेतु मात्र जिनेन्द्रदेव को आराध्य माना है।" ___ "मुनिश्री रामसिंह ने धर्म की शास्त्रीय रूढ़ियों और बाह्याडम्बरों के प्रतिकूल जीवनमुक्ति तथा कैवल्य का असाधारण उपदेश दिया है। मुनिश्री ने इस रचना में आत्मानुभूति और सदाचरण के बिना कर्मकाण्ड की निस्सारता का प्रतिपादन किया है। सच्चा सुख इन्द्रिय-निग्रह व आत्मध्यान में विद्यमान है।"
"मुनिश्री की मान्यता है कि तीर्थयात्रा, मूर्तिपूजा, मंदिर-निर्माणादि की अपेक्षा देह-स्थित देव का दर्शन करना चाहिये। आत्मा इसी देह में स्थित है किन्तु देह से भिन्न है और उसी का ज्ञान परमावश्यक है।" ___ “धार्मिक क्रियाओं में अहिंसा की स्थापना हेतु मुनिश्री रामसिंह ने वनस्पति एकेन्द्रिय जीवों की रक्षा का प्रभावी प्रतिपादन किया। पत्ती, पानी, दाभ, तिल आदि को अपने समान प्राणवान समझो। भगवान की पूजा के लिए पत्ते मत तोड़ो। मुनिश्री ने पत्ती, फूल, फल, तिल आदि सचित्त द्रव्य से पूजा करने का निषेध किया है।"
"केवल आत्मदर्शन ही वास्तविक परमार्थ है। अन्य सभी व्यवहार है। योगीजन इस एक पदार्थ को ही ध्याते हैं। आत्मा को छोड़कर जो अन्य का ध्यान करता है वह मूर्ख है। उसको केवलज्ञान कैसे हो सकता है? उत्तम आत्मा को छोड़कर अन्य किसी का ध्यान मत कर। जिसने मरकत मणि पहचान ली है उसे कांच से क्या प्रयोजन? संसार से उदासीन होकर जिसका मन अपने में स्थित हो गया है वह जैसा भाव करता है वैसी ही प्रवृत्ति करता है। वह निर्भय है, उसके संसार भी नहीं है। जिनके सर्व विकल्प छूट गये हैं
और जो चैतन्यभाव में स्थित हैं वे ही निर्मल ध्यान में स्थित कहे गये हैं। हे जोगी! देह से भिन्न निज शुद्धात्मा का ध्यान करो, उससे निर्वाण की प्राप्ति होगी। चित्त को निश्चल कर आत्मा का ध्यान करने से अष्ट कर्म नाश कर सिद्ध होते हैं।"
" ‘पाहुडदोहा' में लोकोक्तियों और मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है। अनेक उपमाओं, रूपकों और हृदयस्पर्शी दृष्टान्तों द्वारा मुनिश्री ने अपने भावों को अभिव्यक्त किया है।
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