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अपभ्रंश भारती 21
विमलु
होउ
पडिभड
प्रतिपक्ष का योद्धा (दुश्मन) वलु
बल, सामर्थ्य भज्जउ
ध्वस्त होवे, नष्ट होवे भवे-भवि
भव-भव में (जन्म-जन्म में)
निर्मल, शुद्ध, मलरहित बुद्धि
बुद्धि उप्पज्जउ
उत्पन्न होवे 1.5 विसय
इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये जानेवाले पदार्थ कसाय
क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार दुर्गुण राय
राग, आसक्ति परिचत्तउ
त्याग, छोड़ना भवे-भवि
भव-भव में
होवे तिगुत्ति
तीन गुप्ति (मन, वचन, काय का गोपन, संयम) पयत्तउ
प्रयत्न, प्रवृत्ति 1.6 आसापासणि आशा' का जाल (वस्तुओं की प्राप्ति
की इच्छाओं का जाल) बंधणु
बंधन तुट्टउ
टूटे, नष्ट होवे भवे-भवि
भव-भव में मोहजाल
मोह (अज्ञानता) का जाल हट्टर
नष्ट होवे 1.7 संजय-सहु
मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका का (चतुर्विध) संघ संग
संगति, संसर्ग
संशोधित, शुद्ध किया हुआ य
और मले
बँधा हुआ कर्म भवे-भवि
भव-भव जम्मु
जन्म (उत्पत्ति) 1. विषय = इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण किये जानेवाले पदार्थों की रुचि। 2. कषाय = जो आत्मा को कृष करे, दुःख दे, जैसे - क्रोध-मान-माया व लोभ। 3. आशा = वस्तुओं की प्राप्ति की इच्छा।
सोहि