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________________ अपभ्रंश भारती 19 अक्टूबर 2007-2008 15 पं. जोगदेव कृत श्री मुणिसुव्रतानुप्रेक्षा - श्रीमती शकुन्तला जैन मंगलाचरण मंगलाचरण-स्वरूप रचना के आदि में रचनाकार पण्डित जोगदेव कहते हैं कि - अर्थ - मैं देवताओं, मनुष्यों, विद्याधरों और नागेन्द्रों से पूजित, सम्पूर्ण विशुद्ध (निर्मल), केवलज्ञान गुण से समन्वित, विनय सहित नेत्रों से मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके भव्यजनों के लिए बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ॥1॥ अनित्य-भावना अर्थ - जीवन, ओस की बूंद के समान (क्षणभंगुर) है। यौवन को इन्द्रधनुष का अनुकरण करने वाला मानो (जिस तरह इन्द्रधनुष शाश्वत नहीं है उसी तरह यौवन शाश्वत नहीं है) संपत्ति, पर्वत से (गिरती हुई) नदी के प्रवाह-वेग के समान (है) जीवन चंचल (अस्थिर है) और वैभव असार (है) फिर सज्जनों का समागम अस्थिर है (यह) जानकर श्रेष्ठ दयारूपी धर्म को धारण कर (करो)। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुपेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ॥2॥
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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