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अक्टूबर 2007-2008
अपभ्रंश भारती 19
पं. जोगदेव कृत श्री मुणिसुव्रतानुप्रेक्षा
___- श्रीमती शकुन्तला जैन
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मंगलाचरण णविवि चलण मुणिसुव्वयहो।' सुर-नर-खयर-महोरग महियहो सयल विमल केवलगुण सहियहो। वारह अणुवेखउ भणमि। भव्वयणह णयण-विणए-सहियहो
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो ॥1॥
अनित्य-भावना जीविउ ऊसाविंदु समाणउ जोवणु सुरधणु अणुहर माणउ। संपइ गिरिणइवेय समाणउ' चंचलजीविउ विहउ असारउ। सुयणा समागमु पुणु अथिरु जाणिवि करहु धम्मुदयसारउ।
णविवि चलण मुणिसुव्वयहो॥2॥