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________________ अपभ्रंश भारती 19 अक्टूबर 2007-2008 महाकवि भास-कृत 'अविमारकम्' में प्रयुक्त प्राकृत के अव्यय - डॉ. (श्रीमती) कौशल्या चौहान प्राकृत में रूपान्तर के अनुसार पदों के दो भेद हैं - विकारी और अविकारी।' जिस सार्थक शब्द के रूप में विभक्ति या प्रत्यय जोड़ने से विकार या परिवर्तन होता है उसे विकारी कहते हैं। विकारी अर्थात् परिवर्तनशील सार्थक शब्दों के संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया और विशेषण - ये चार मूल भेद हैं। ऐसे शब्द, जिनके रूप में कोई विकार अर्थात् परिवर्तन उत्पन्न न हो और जो सदा सभी लिङ्गों, सभी विभक्तियों और सभी वचनों में एकसमान रहें, अविकारी अर्थात् अव्यय कहलाते हैं। अव्ययवाची शब्द सदा एकरूप रहते हैं। इनके रूपों में कोई घटाव-बढ़ाव नहीं होता है। पाणिनि के अनुसार स्वर-आदि तथा निपात की अव्यय संज्ञा होती है। तद्धित प्रत्ययान्त', कृदन्त तथा कुछ समासान्त शब्द भी अव्यय होते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत-व्याकरण के आठवें अध्याय के द्वितीय पाद के 175वें सूत्र से लेकर इसी पाद की समाप्तिपर्यन्त अनेक अव्ययों का विभिन्न अर्थों में प्रयोग दर्शाया है। भास विरचित ‘अविमारकम्' में प्रयुक्त प्राकृत में यद्यपि पाणिनि द्वारा निर्दिष्ट अव्ययों का भी प्रयोग किया गया है परन्तु प्रस्तुत शोध-पत्र में हेमचन्द्राचार्य के प्राकृत-व्याकरण को ही आधारभूत मानकर ‘अविमारकम्' में प्रयुक्त प्राकृत के अव्ययों का उल्लेख किया जा रहा है। 1. किल - (अनिश्चिताख्यानार्थक) - आचार्य हेमचन्द्र ने किल के अर्थ में किर, इर तथा हिर अव्ययों के प्रयोग का उल्लेख किया है। परन्तु वररुचि के अनुसार अनिश्चित
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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