________________
अपभ्रंश भारती 19
अर्थात् असम्यग् अर्थ को सूचित करने के लिए ‘इर', 'किर' तथा 'किल' अव्ययों का प्रयोग होता है। अविमारकम् में इन तीनों अव्ययों में से केवल 'किल' का प्रयोग निम्नलिखित स्थलों पर हुआ है - तुवं किल अवेदिओ।
अंक-2, पृ. 28 सुदं च मए भट्टिणीय समीवे अमच्चेहि किल भणिदं।
अंक-2, पृ. 36 तहिं किल भट्टिणीए भणिदं।
अंक-3, पृ. 60 तदो तं पि किल अणुमदं महाराएण।
अंक-3, पृ. 60 उठेहि किल।
अंक-3, पृ. 83 एदं वि ओसधं लिम्पेहि किल।
अंक-5, पृ. 128 सअंकिल कासिराओ जण्णवावारेण ण आअदो।
अंक-6, पृ. 142 अज्ज किल अहिअसन्दावो जादो।
अंक-6, पृ. 144 2. आम - (अभ्युपगमार्थक) प्राकृत के अनुसार अभ्युपगम अर्थात् स्वीकार तथा सम्मति जैसे अर्थों के लिए 'आम' अव्यय का प्रयोग करना चाहिए। अविमारकम् में निम्नलिखित स्थलों पर 'आम' अव्यय का प्रयोग हुआ है - आम भो ! दिट्ठाओ तत्तहोदीओ!
अंक-2, पृ. 49 आम भोदि ! जण्णोपवीदेण बम्हणो, चीवरेण रत्तपडो। अंक-5, पृ. 135
3. एव्व - (अवधारणार्थक) त्रिविक्रमदेव के अनुसार शौरसेनी प्राकृत में एव के . अर्थ में ‘एव्व' अव्यय का प्रयोग होता है। अविमारकम् में निम्नलिखित स्थलों पर 'एव्व' अव्यय का प्रयोग हुआ है - तत्तहोदो आवास एव्व गच्छामि।
अंक-2, पृ. 26 एसो भट्टिदारओ इदो एव्व आअच्छदि।
अंक-2, पृ. 30 तहिं तहिं एव्व पडन्ति
अंक-2, पृ. 31 जोअसत्थं एव्व होदु।
अंक-2, पृ. 41 पवेसमत्तं एव्व दुल्लहं।
अंक-2, पृ. 44 एत्थ एव्व जामादुओ आणीदव्वो त्ति।
अंक-3, पृ. 60 णक्खत्तविसेसं एव्व चिन्तअन्ति
अंक-6, पृ. 143 4. हला - (आमन्त्रणार्थक) आचार्य हेमचन्द्र ने सखि के आमन्त्रण के लिए विकल्प से 'मामि', 'हला' तथा 'हले' अव्ययों के प्रयोग का उल्लेख किया है। 4