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________________ अपभ्रंश भारती 19 की भाषा बताते हुए उन्होंने कहा है कि अपभ्रंश आभीरादि की भाषा है और शास्त्रानुसार संस्कृत के अतिरिक्त सभी भाषाएँ अपभ्रंश हैं। राजशेखर ने अपनी रचनाओं में अपभ्रंश के संबंध में जो उल्लेख किया है उससे यही ज्ञात होता है कि उनके समय में अपभ्रंश पतित न समझी जाकर अभिजात्य वर्ग की भाषा बनी तथा विद्वानों में भी आदर पाने लगी। जगह-जगह पर राजशेखर ने अपभ्रंश की प्रशंसा की है और 'बाल रामायण' में अपभ्रंश काव्य को 'सुभण्य' भी कहा है। भरतमुनि (विक्रम तीसरी शताब्दी) ने अपभ्रंश नाम न देकर लोकभाषा को ‘देश भाषा' कहा है। अपभ्रंश में स्वयंभू का ‘पउमचरिउ' (पउम-चरित) और 'हरिवंशपुराण', पुष्पदंत का 'महापुराण', यशकीर्ति का पांडवपुराण और रइधू का ‘पद्मपुराण' और 'हरिवंशपुराण' उल्लेखनीय हैं। इन पुराणों में 'रामकथा' और 'कृष्णकथा' काव्य भी है। कवि स्वयंभू स्वयंभू का 'पउमचरिउ' एक महत्वपूर्ण रचना है। यह रचना रामकथा पर आधारित है। 'पउमचरिउ' को स्वयंभू पूरा नहीं कर सके, इसे उनके पुत्र त्रिभुवन स्वयंभू ने पूरा किया। राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी काव्यधारा' में इसके एक अंश को प्रकाशित किया है। कवि स्वयंभू ने राम और कृष्ण से संबंधित चरित काव्यों का विस्तार और विकास किया। उन्होंने राम को लेकर 'पउमचरिउ' और कृष्ण को लेकर 'रिट्ठणेमिचरिउ' चरितकाव्य की रचना की। कवि स्वयंभू की निम्नलिखित रचनाएँ हैं - पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ, स्वयंभू छंद आदि। कवि स्वयंभू को प्रसिद्धि पउमचरिउ (राम-काव्य) से ही मिली। पउमचरिउ पाँच काण्ड और तिरासी संधियों (संर्गों) वाला एक विशाल महाकाव्य है। इसके पाँच काण्ड इस प्रकार हैं - विज्जाहरकाण्ड, उज्झाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, जुज्झकांड और उत्तरकांड। ‘पउमचरिउ' में रामकथा को एक नदी का रूपक दिया गया है। कवि स्वयंभू का कथन है कि वर्द्धमान महावीर के मुख-कुहर से निकलकर यह रामकथारूपी सरिता क्रमागत रूप से बहती चली आ रही है। बद्धमाण्ण-मुह-कुहर विणिग्गय । रामकथा-णई एह कमागय । रामकथा को लेकर अनेक चर्चाओं में स्वयंभू की अपनी रामायण कम रोचक नहीं है जहाँ तमाम मौलिक उद्भावनाएँ देखने को मिलती हैं। ___कवि स्वयंभू रामकाव्य लिखने के पहले स्पष्ट शब्दों में अपने मत को इस प्रकार से प्रकट करते हैं - मैं जनता की भाषा में जनता के लिए काव्य का निर्माण कर रहा हूँ। राम का चरित्रांकन
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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