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अपभ्रंश भारती 19
करते समय न तो उन्होंने आदर्श का दामन पकड़ा है और न ही उसमें किसी प्रकार की अलौकिकता का समावेश किया है। उन्होंने राम को साधारण मनुष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। तुलसी के राम और स्वयंभू के राम में अन्तर है। तुलसी के राम भगवान हैं, पूज्य हैं, जबकि स्वयंभू के राम साधारण मनुष्य हैं जो सीता को पाने के लिए रोते हैं। रोते तो तुलसी के राम भी साधारणजन की तरह ही हैं पर एक अभिनय की तरह । रावण जैसे पराक्रमी राजा से संघर्ष कर उसे वापस लाते हैं।
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जब सीता वापस आती है तो राम उसे संदेह नजर से देखते हैं। उसे अग्नि परीक्षा के लिए विवश करते हैं। अग्नि परीक्षा के लिए वरासन पर बैठती है। राम सीता को और सीता राम को देखती है। राम व्यंग्य से मुस्कुराते हैं और सोचते हैं कि इसे कैसे स्वीकार किया जाए जो इतने समय तक दूसरे पुरुष के अधीन थी। राम धिक्कारते हुए कहते हैं कि नारी अशुद्ध होती है, निर्लज्ज होती है और मलिनमति होती है
कंतहि तणिय कंति पक्खप्पिणु
भण्ड
पाहु
बिहसेप्पणु
जइ वि कु लग्गयाउ
णिरवज्ज्उ
महिलउ होंति सुठु णिलज्ज्उ । 83.8।
- वर्णन
इस महाकाव्य में वन-वर्णन, जलविहार-वर्णन, सूर्योदय सूर्यास्त-वर्णन, ऋतु-व आदि का भी वर्णन है ।
स्वयंभू ने अपनी रचनाओं में गंधोकधारा, द्विपदी, हेला मंजरी, जंभेटिया, वदनक, पाराणक, मदनावतार, विलासिनी, प्रमाणिका समानिका आदि छन्दों का भी प्रयोग किया है। कबि स्वयंभू की सम्पन्नता को देखकर उन्हें 'छंदश चूड़ामणि', 'कविराज चक्रवर्ती' से विभूषित किया गया है।
कवि स्वयंभू का 'पउमचरिउ' विलाप एवं युद्ध-वर्णन के लिए प्रसिद्ध है, दशरथविलाप, राम विलाप, भरत विलाप, रावण-विलाप, नारी- विलाप आदि का चित्रण हुआ है। अन्ततः हम कह सकते हैं कि कवि स्वयंभू ने अपने जीवनकाल के सभी क्षेत्रों में गहरी पैठ जमायी है। कथा कहने की शैली तथा कवित्व शक्ति 'पउम चरिउ' में दिखाई पड़ती है। उनकी भाषा की स्वभाविकता, प्रवाहमयी लोक-प्रचलित भाषा भी दिखाई पड़ती है। उनकी रचनाओं में संगीत-कला आदि का गहरा अध्ययन दिखाई पड़ता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण उन्हें 'अपभ्रंश भाषा का वाल्मीकि' कहा जाता है।