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अपभ्रंश भारती 19
पाने योग्य मानते हैं। काव्य-सौन्दर्य-समाहार की दृष्टि से कहा जा सकता है कि स्वयंभू अपने 'कव्वु' (कवि-कर्म) में सफल हुए हैं।
1. पउमचरिउ - महाकवि स्वयंभू, प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, 1.1.1-2 2. डॉ. भगीरथ मिश्र, हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास, पृ. 280 3. निराला, प्रबन्ध प्रतिमा, पृ. 272 4. हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली-6, पृ. 297 5. रा.भा. पाटणकर, सौन्दर्य मीमांसा, पृ. 143 6. केशवदास, कविप्रिया, पाँचवाँ प्रभाव 7. पउमचरिउ - 3.1.1-13 8. पउमचरिउ - 6.1 9. पउमचरिउ - 9वीं सन्धि, 11, 12, 13 10. पउमचरिउ - 82.6.1-7 11. रा.भा. पाटणकर, सौन्दर्य मीमांसा, पृ. 91 12. पउमचरिउ - 58.3.3-9 13. पउमचरिउ - 83.17.9 14. पउमचरिउ - 49.1.1 15. हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली-6, पृ. 291
- आचार्य
हिन्दी विभाग, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
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