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________________ अपभ्रंश भारती 19 अहवइ णह-पायवहाँ विलासहों। सयल दियन्तर-दीहर-डालहों । उवदिसरंखोलिर-उवसाहहों। सञ्झा-पल्लव-णियर-सणाहहों। वहुवव-अब्भ-पत्त-सच्छायहों। गह-णक्खत्त-कुसुम-संघायहों।63.11। सीता की अग्नि-परीक्षा-प्रसंग में कवि स्वयंभू ने अपनी परिकल्पना द्वारा अग्नि की लपटों को सुन्दर नव कमलों से ढके सरोवर का रूप दे दिया है। उस सरोवर में एक विशाल कमल उग आता है जिसके मध्य मणियों और स्वर्ण से सुन्दर एक सिंहासन उत्पन्न हो जाता है - ताम तरुण तामरसेंहिं छण्णउ। सो ज्जें जलणु सरवरु उप्पण्णउ । अण्णु वि सहसवत्तु उप्पण्णउ। दियवएँ आसणु णं अवइण्णउ।83.14। सीता के चरित्र का उज्ज्वल पक्ष ‘पउमचरिउ' में उभरा है। भक्ति-प्रधान काव्य होने के कारण इस काव्य में स्वयंभू मानव-जीवन की सार्थकता जिनभक्ति के अवलम्बन में ही मानते हैं। फलतः ‘पउमचरिउ' का प्रत्येक चरित्र तपश्चरण अंगीकार कर समस्त आसक्तियों - स्नेह का त्यागकर पूर्वजन्म-कृत कर्म-बन्धन से मुक्ति की इच्छा व्यक्त करता है। नारी-देह की गर्हणा धर्म-शास्त्रों का विवेच्य विषय रहा है, यहाँ भी वह उसी रूप में विद्यमान है, हालाँकि आधुनिक आलोचना-दृष्टि इस गर्हणा को नहीं स्वीकारती। 'राम के चरित्र में महाकाव्योचित गरिमा - जो दुःख और सुख में, सफलता और विफलता में, उल्लास में और अवसाद में अद्वितीयता और अपूर्वता ला देती है - नहीं आ पायी है। सीता अवश्य उज्ज्वल बनी है, पर अन्त तक जाकर वह भी पराजित-सी होकर वैराग्य मार्ग का अवलम्बन करती है, ताकि फिर दूसरे जन्म में स्त्री होकर जन्म न लेना पड़े।"13 "पउमचरिउ' रस-सृष्टि और चरित्र-संचरण में 'विरुद्धों का सामंजस्य' लिये है। प्रवृत्ति-निवृत्ति, शृंगार-वैराग्य, शृंगार-युद्ध, काव्य-वस्तु-अभिव्यंजना, संगीत एवं भाषित ध्वनियों का चमत्कार ‘कव्वुप्पल' (काव्य-उत्पल) में क्या कुछ नहीं है, जिसे कविलेखनी ने न सँवारा हो। फिर भी, काव्य में सरल मानस की ही अभिव्यक्ति हुई है। प्रसंग प्रेम का हो या युद्ध का - अभिव्यक्तिगत सहजता सर्वत्र विद्यमान है। ‘पति की वीरता को सहज गर्व का विषय बनाकर वीर बालाएँ ऐसी दर्पोक्तियाँ करती हैं कि बस देखते ही बनता है। यह एकदम नवीन प्राण-स्पन्दी काव्य है।"14 आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी स्वयंभू एवं पुष्पदन्त को भारतीय भाषाओं के काव्य के अद्भुत ज्वलन्त ज्योतिष्क मानते हुए उन्हें प्रथम श्रेणी के कवियों में स्थान
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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