SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 19 - श्लेष एवं उपमा की छटा यहाँ काव्य-बन्ध का रूप लेती है। बिम्ब-सृष्टि - गति-क्रियात्मक-ध्वन्यात्मक बिम्बों की प्रस्तुति ने 'पउमचरिउ' में चार चाँद लगा दिए हैं। ये बिम्ब मिश्रित भी हैं, पृथक् भी। रुद्रभूति-लक्ष्मण-युद्ध प्रसंग में धनुष के तेज का वर्णन तो हुआ ही है, साथ ही कवि स्वकल्पना द्वारा गतिक्रियात्मक-ध्वन्यात्मक बिम्बों की ऐसी झड़ी लगाता है जो सर्वथा मौलिक हैं, जैसे - तीव्र हवा से आहत मेघ, मेघ-गर्जना से गिरते वज्र अशनि, टूटते शिखर, दलित होती धरती, साँपों का विषाग्नि छोड़ना, समुद्र में उसके पहुंचते ही ज्वालाओं का चिन्गारी फेंकना, सीपी-शंख सम्पुट का जल उठना, फटी सीपियों से मुक्ताफल का धक्-धक् करना, सागर-जल की कडू-कडू, किनारों का हस-हस कर धंसना, आदि। . लक्ष्मण के क्रोध को कलि-कृतान्त की संज्ञा मिली है - धगधगधगन्तु। थरथरथरन्तु। ‘हणु हणु' भणन्तु। णं कलि कियन्तु।27.9। अरण्य के महावटवृक्ष पर स्वर करते पक्षियों की बोली को कवि ककहरे के रूप में देखता है, महावट मानो गुरु हो - गुरु-वेसु करेवि सुन्दर-सराइँ। णं विहय पढावड़ अक्खराइँ। वुक्कण-किसलय क-क्का रवन्ति। वाउलि-विहङ्ग कि-क्की भणन्ति । वण-कुक्कुड कु-कू आयरन्ति । अण्णु वि कलावि के -क्कइ चवन्ति । पियमाहवियउ को-क्कउ लवन्ति। कं-का वप्पीह समुल्लवन्ति ।27.15। पावस ऋतु की ग्रीष्म ऋतु पर विजय एक नरेश्वर की दूसरे नरेश्वर पर ध्वनिबिम्बों में बाँधी गई विजय-आयोजना है - जं पाउस - णरिन्दु गलगज्जि। धूली - रउ गिम्भेण विसज्जिउ। धगधगधगधगन्तु उद्धाइउ। हसहसहसहसन्तु संपाइउ । जलजलजलजलजल पचलन्तउ। जालावलि-फुल्लिंग मेल्लन्तउ। झडझडझडझडन्तु पहरन्तउ। तरुवर-रिउ-भड-थड-भज्जन्तउ।28.21 मानस-बिम्ब - डूबते सूरज के बिम्ब-सौन्दर्य को वृक्ष के रूपक में बाँधते हुए कवि स्वयंभू मानस-बिम्ब की सृष्टि कहते हैं - सूर्य डूबने के पीछे एक कारण निहित है - उसका महायुद्ध-दुःख देखने में असमर्थ होना। आकाशरूपी वृक्ष में सूर्यरूपी सुन्दर फूल सुशोभित हो गया है जिसके साथ शोभित हैं दिशाओं रूपी शाखाएँ -
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy