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________________ अपभ्रंश भारती 19 अक्टूबर 2007-2008 23 कवि स्वयम्भू कृत पउमचरिउ में स्तुति काव्य डॉ. उमा भट्ट साहित्य रचना की दृष्टि से ईसा की छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक का समय अपभ्रंश भाषा का है।' छठी शताब्दी के अलंकारशास्त्री भामह ने अपने काव्यालंकार में अपभ्रंश की गणना संस्कृत और प्राकृत के साथ की है। अपभ्रंश साहित्य को पुराणकाव्य, चरितकाव्य, कथाकाव्य तथा मुक्तककाव्य आदि में वर्गीकृत किया जा सकता है जिसमें भक्ति, नीति, निवृत्ति, शृंगार तथा वीररसपरक रचनाएँ मिलती हैं। अपभ्रंश के प्रमुख कवियों में स्वयम्भू, पुष्पदंत, कनकामर, रइधू, नयनन्दि, वीरकवि, रामसिंह, सरहपा, जोइन्दु आदि हैं। प्रमुख महाकवि स्वयम्भू आठवीं शती के कवि हैं। इनके तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं - पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ तथा स्वयम्भूछन्द । पउमचरिउ का विषय रामकथा है। रिट्ठणेमिचरिउ में तीर्थंकर नेमिनाथ, उनके चचेरे भाई कृष्ण तथा कौरव - पाण्डवों की कथा है । स्वयम्भूछंद में प्राकृत एवं अपभ्रंश के छंदों का विवेचन किया गया है। कर्नाटक निवासी स्वयम्भू की गणना भारत के श्रेष्ठतम कवियों में होती है । प्रबन्ध काव्य के क्षेत्र में स्वयम्भू अपभ्रंश के आदिकवि माने जाते हैं तथा उनकी तुलना संस्कृत के आदिकवि वाल्मीकि से की जाती है । ' पउमचरिउ अपभ्रंश की महाकाव्य परंपरा का काव्य है जिसे पुराण काव्य परंपरा के अंतर्गत रखा गया है। यह जैन परंपरा में लिखित रामचरित है । अतः राम के चरित्र को जैन
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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